वास्तु शास्त्र में दिशाओं का हमारे जीवन में बहुत महत्व बताया जाता है। हर दिशा एक तरह की एनर्जी से जुड़ी होती है। ऐसे में हम इन दिशाओं में जो भी काम किया जाता है, उस पर इन्हीं ऊर्जाओं का प्रभाव पड़ता है। जैसे, दक्षिण दिशा यमलोक और पितरों की दिशा मानी जाती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक पौराणिक मान्यता भी है कि दक्षिण दिशा की तरफ से मुंह करके पूजा-पाठ या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए। वास्तु शास्त्र में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि सोने के लिए कौन सी दिशा उत्तम मानी जाती है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि ईशान कोण दिशा में शयन कक्ष यानी सोने वाले कमरे के होने से क्या होता है।
ईशान कोण दिशा
वास्तु के मुताबिक घर, ऑफिस या फिर किसी भवन की उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण दिशा कहा जाता है। यह दिशा परम पिता परमेश्वर की दिशा मानी जाती है, जिस पर देवगुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है। इसलिए ईशान कोण दिशा में शयनकक्ष नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि मोग विलास और शयन सुख पर शुक्र का स्वामित्व है।
ईशान कोण दिशा का महत्व
घर की उत्तर-पूर्व दिशा यानी की ईशान कोण दिशा को ब्रह्म का स्थान और देवताओं का स्थान माना जाता है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक पूर्व दिशा में नियमों का पालन करते रहने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र में भी उत्तर-पूर्व दिशा के महत्व के बारे में बताया गया है। इस दिशा में उचित व्यवस्था से लाभ मिलता है।
इस दिशा में शयनकक्ष होने से बढ़ते हैं झगड़े
ईशानकोण दिशा में शयनकक्ष होने से गुरु और शुक्र के प्रभाव में कमी आती है। जिसके कारण उचित शयनसुख नहीं मिल पाएगा। वहीं आपसी प्रेम में कमी और पति-पत्नी में तकरार की स्थिति बनी रहती है। वहीं इस दिशा में शयनकक्ष होने पर लंबी बीमारियों का भी सामना करना पड़ सकता है। ईशानकोण दिशा में शयनकक्ष होने से व्यक्ति भौतिकता की तरफ मुड़ता जाता है और पति-पत्नी में भावानात्मक सम्बधों की समझ कम होने लगती है। जिसकी वजह से पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़ जाते हैं।
किन लोगों के लिए ईशान कोण दिशा में बेहतर है शयनकक्ष
बता दें कि पति-पत्नी का ईशान-कोण दिशा में शयनकक्ष होना अच्छा नहीं माना जाता है। लेकिन आप 17-18 साल तक के बच्चे के लिए इस दिशा में शयनकक्ष बनवा सकते हैं। इस दिशा में बच्चों का शयनकक्ष होने से बच्चे अनुशासित और मर्यादित रहते हैं। क्योंकि इस क्षेत्र पर ज्ञान के स्वामी गुरु एवं बुद्धि के स्वामी बुध ग्रह का संयुक्त प्रभाव बना रहता है। वहीं इस क्षेत्र में जल तत्व अधिक होना बच्चे के विकास के लिए जरूरी है। सांसारिक कार्यों से विरक्त घर के वृद्ध जन को भी ईशान कोण दिशा में शयन कक्ष दिया जा सकता है।