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Pradosh Fast: प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा का होता है विशेष महत्व, पूरी होगी सभी मनोकामनाएं

By Astro panchang | Jan 29, 2024

भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए जातक को प्रदोष व्रत करने चाहिए। इस व्रत को करने से जातक को जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बताया जाता है कि लंकापति रावण के पास जितनी भी धन-संपदा व सिद्धियां थी, वह सब भगवान शिव की कृपा से उसे प्राप्त हुई थी। प्रदोष व्रत कर लंकापति रावण भगवान शिव को प्रसन्न कर सिद्धियां प्राप्त करता है। आपको बता दें कि प्रदोष काल में लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गन्ने के रस द्वारा शिव जी का रूद्राभिषेक करने का निर्देश दिया गया है।

प्रदोष व्रत महिला और पुरुष दोनों की कर सकते हैं। बता दें कि प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस व्रत के उपासक भगवान भोलेनाथ हैं। वहीं प्रदोष काल में महादेवी का व्रत करने का विधान है। इस व्रत को करने वाले जातक को शाम को भगवान शिव की पूजा करने के बाद भोजन करना चाहिए। वहीं धन-सम्पत्ति व सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति के लिए प्रदोष काल में भगवान शिव का तांडव स्त्रोत का पाठ करना विशेष लाभकारी माना जाता है।

प्रदोष व्रत का महत्व
हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक त्रयोदशी और प्रदोष व्रत करने वाले जातक संतोषी और सुखी बनते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से महिलाओं का सुहाग अटल रहता है। जिस कामना को लेकर स्त्री व पुरुष इस व्रत को करते हैं, कैलाशपति भगवान शिव-शंकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जो भी स्त्री व पुरुष त्रयोदशी का व्रत करते हैं, उनको सौ गाय के दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को विधि-विधान और श्रद्धापूर्वक करने से जातक के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

प्रदोष व्रत पूजा की विधि
प्रदोष व्रत के लिए सुबह जल्दी स्नान आदि कर भगवान शिव का स्मरण करें। पूरा दिन निराहार रहने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले फिर से स्नान आदि कर बिल्वपत्र, धूप-दीप, गंध, मदार पुष्प और नैवेद्य आदि पूजन सामग्री एकत्र कर लें। इसके बाद उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की प्रकृति बनाकर आसन पर बैठें। इसके बाद विधि-विधान से पूजा करते हुए पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए जल चढ़ाएं। वहीं भगवान शिव को जल अर्पित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह जलधारा टूटे नहीं। 

भगवान शिव पर जलधारा अर्पित करते समय आंखें खुली हुई हों और आपकी दृष्टि उस जलधारा पर होना चाहिए। जिस कामना से आप प्रदोष व्रत कर रहे हैं, उसके लिए भगवान भोलेनाथ के समक्ष श्रद्धा-भाव से प्रार्थना करें। इस दौरान भगवान शिव के अलावा मां पार्वती और नंदी की पूजा करनी चाहिए। दोनों पक्षों की त्रयोदशी का प्रदोष व्रत करना चाहिए। बता दें कि स्कन्द पुराण में इस व्रत की महिमा के बारे में बताया गया है।

उद्यापन
प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और जातक की मनोकामना पूरी होती है। जातक ग्यारह त्रयोदशी अथवा वर्ष भर की 26 त्रयोदशी के व्रत करने के बाद उद्यापन करना चाहिए। इस व्रत का उद्यापन करने से एक दिन पहले घर में भगवान श्रीगणेश की पूजा कर भजन-कीर्तन और रात में जागरण आदि करना चाहिए। वहीं दूसरे दिन स्नान आदि कर भगवान शिव और मां पार्वती की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। 

फिर 'ऊं उमा सहिताय नमः शिवाय' का जाप करते हुए 108 बार खीर की अग्नि में आहुति दें। इसके बाद हवन कर श्रेष्ठ ब्राह्मण या आचार्य को भोजन करवाकर अपनी यथाशक्ति अनुसार दान-दक्षिणा देकर विदा करें। इस तरह से व्रत व उद्यापन करने वाले जातकों की हर मनोकामना पूरी होती है और अंत में मोक्ष पद की प्राप्ति करता है।
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