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गया में बालू से पिंडदान करने का क्या है महत्व, पढ़ें विस्तार से

By Astro panchang | Sep 21, 2021

पितृ पक्ष की शुरूआत हो चुकी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष से लेकर अमवस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। इस साल पितृ पक्ष 20 सितम्बर से 17 अक्टूबर तक है। हिन्दू धर्म केअनुसार पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका श्राद्ध करना बहुत जरूरी माना गया है। पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और आशीर्वाद देती है। हिंदू धर्म में गया में बालू से पिंडदान करने का विशेष महत्व है। कई बार हमारे मन में विचार आता है कि आखिर पितरों को बालू से पिंडदान क्यों किया जाता है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि बालू से पिंडदान क्यों किया जाता है -   

पिंडदान क्या होता है?
अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए किया जाने वाला दान ही पिंडदान है। पिंड का मतलब होता है गोल। पिंड दान में आटे से बने गोल पिंड का दान किया जाता है इसलिए इसे पिंड दान कहा जाता है। पिंड दान में चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर तैयार किए गए पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ पितरों को अर्पित किया जाता है। 

बालू से पिंडदान क्यों किया जाता है?  
वाल्मिकी रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है। तभी माता सीता को महाराज दशरथ की आत्मा के दर्शन हुए जो उनसे पिंडदान की मांग कर रही थी। तब माता सीता ने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ की आत्मा ने प्रसन्न होकर माता सीता को आशीर्वाद दिया। माना जाता है कि तब से पितृपक्ष में बालू से पिंडदान करने की परंपरा चली आ रही है।
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