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शरद पूर्णिमा 2020 में कब है और उस दिन अमृत बरसने का क्या मतलब है?

By Astro panchang | Oct 21, 2020

हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को 5 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 31 अक्टूबर को 8 बजकर 21 मिनट पर समाप्त होगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूरे साल में सिर्फ इसी दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चाँद 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर रातभर अमृत बरसता है। यही वजह है कि उत्तर भारत में शरद पूर्णिमा को रात में खीर बनाकर रातभर चाँदनी में रखने का रिवाज है। शरद पूर्णिमा को 'कौमुदी व्रत', 'कोजागरी पूर्णिमा' भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्रीकृष्ण ने निधिवन में गोपियों के साथ महारास रचाया था इसलिए इसे 'रास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं क्यों मनाई जाती है शरद पूर्णिमा और क्या है शरद पूर्णिमा की रात अमृत बरसने का मतलब

क्यों मनाई जाती है शारद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा को लेकर कई मान्यताएँ प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्‍मी जी का जन्‍म हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्‍मी माता घर-घर जाती हैं और जागने वाले भक्‍तों को धन-वैभव का वरदान देती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मिकि जयंती भी मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा मनाने के पीछे एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के चार माह के शयनकाल का अंतिम चरण होता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां शरद पूर्णिमा का व्रत करती हैं उन्‍हें संतान-सुख की प्राप्‍ति होती है। वहीं, माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं। वहीं, कुँवारी कन्याओं को शारद पूर्णिमा का व्रत करने से मनवांछित व्रत की प्राप्ति होती है।
 

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क्या है शरद पूर्णिमा को रात में अमृत बरसने का मतलब?  
ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा को रात में आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा को अमृत बरसने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्‍य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।वहीं, शरद पूर्णिमा को रात में छत पर चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि दूध में मौजूद लैक्टिक नाम का तत्व चन्द्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं खीर में चावल होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है इसलिए चाँदनी में रखी दूध और चावल से बनी खीर का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर खाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई रोगों का नाश होता है।
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