महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक भीष्म पितामह थे। वह महाराज शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे। भीष्म पितामह को अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ था। जन्म के बाद उनका नाम देवव्रत रखा गया था। लेकिन जीवन भर विवाह न करने की प्रतिज्ञा की वजह से उनका नाम भीष्म पड़ गया। वह एक श्राप के कारण वह लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे और अंत समय में उनको असहनीय कष्ट का सामना करना पड़ा था।
शांतनु ने तोड़ा था वचन
गंगा ने शांतनु से यह वचन लिया था कि वह उनके किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। शांतनु को इस वचन से बांधने के बाद गंगा ने अपने सातों पुत्रों को नदी में प्रवाहित कर दिया और वह गंगा से कुछ नहीं बोल सके। जब देवी गंगा ने 8वें पुत्र के साथ भी ऐसा करने जा रही थीं, तो शांतनु ने उनको ऐसा करने से रोका और इसका कारण पूछा। तब मां गंगा ने शांतनु को जवाब देते हुए कहा कि वह अपने पुत्रों को ऋषि वशिष्ठ द्वारा बोले गए श्राप से मुक्त कर रही हूं। लेकिन 8वें पुत्र को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल सकी। बता दें कि यह बालक और कोई नहीं बल्कि भीष्म पितामह थे।
मुक्त क्यों नहीं हो पाया 8वां पुत्र
पौराणिक कथा के मुताबिक गंगा के 8 पुत्र पिछले जन्म में 8 वसु अवतार थे। जिनमें से द्यु नामक एक वसु ने अन्य के साथ मिलकर ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु गाय को चुरा लिया था। इस बात का पता जब ऋषि को पता चली, तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने गुस्से में आकर सभी को यह श्राप दिया कि वह सभी मृत्युलोक में मानव रूप में जन्म लेंगे। साथ ही इन सभी को कई तरह के कष्टों का सामना करना होगा।
ऐसे में उन सभी को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने ऋषि वशिष्ठ से क्षमायाचना की। तब ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि सातों वसु को मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन द्यु को अपनी सजा का फल भोगना पड़ेगा। यही वजह है कि गंगा के 8वें पुत्र अर्थात भीष्म पितामह को इस श्राप से मुक्ति नहीं मिल सकी।