हिन्दू धर्म में गणेश पूजा को बहुत ही अहम स्थान प्राप्त है। गणेश पूजा हिन्दुओ में की जाने वाली सबसे पहली पूजा है। हर शुभ कार्य में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। सनातन धर्म में पूजा पाठ के बहुत सारे पद्धतियाँ बताई गयीं हैं। उसी में एक महत्वपूर्ण भाग दूर्वा का भी है। कुछ देवी देवताओं को छोर कर दूर्वा हर प्रकार के पूजा में डाला जाता है। जैसे शिव जी की पूजा बेलपत्र और विष्णु जी की पूजा तुलसी के बिना नहीं की जा सकती उसी प्रकार गणेश जी की पूजा बिना दूर्वा के पूरी नहीं मानी जाती। ऐसा माना जाता है की गणेश जी को दूर्वा बहुत प्रिय है। आइए जानते है क्यों गणेश जी की पूजा दूर्वा के बिना अधूरी क्यों मानी जाती है।
क्या है दूर्वा
दूर्वा को हम ऐसे ही जानें तो ये घास है। ऐसी मान्यता है कि जब सीता जी धरती में समां गयी थी तो श्री राम जी उन्हें पकड़ने की कोशिश किए थे जिससे उनके हाथ में उनका कुछ बाल आ गया था जो की आज दूर्वा के रुप में पूजा में प्रयोग होती है।
समुद्र मंथन से निकली दूर्वा
कुछ मान्यताओं के अनुसार दूर्वा समुद्र मंथन से निकली थी। अमृत प्राप्ति के लिए जब मंदार पर्वत को क्षीरसागर में मथा जा रहा था तब भगवन विष्णु ने उसे अपने जांघों पर धारण किया था जिससे उनके पैरो के कुछ बाल टूट कर समुद्र में गिर गए थे। जो मथने के कारण दूर्वा बन कर उत्पन्न हुए।
अजर-अमर दूर्वा
समुद्र मंथन से निकलने के वज़ह से अमृत का कलश इसके ऊपर रखा गया था। जिससे उस कलश से कुछ बुँदे दूर्वा पर गिर गयीं इससे दूर्वा अजर अमर हो गयी। दूर्वा को कितना भी काट लो फिर भी उसकी जड़े निकल आती है।
गणेश जी को क्यों प्रिय है दूर्वा-
1. दूर्वा हरी और कोमल प्रकृति की होती है जो की हाथिओं को बहुत प्रिय होती हैं। हाथी इसे बहुत चाव से खाते है।
2. गणेश जो को विनम्र और सरल लोग बहुत पसंद होते है और दूर्वा का स्वभाव बहुत ही सरल और विनम्र होता है। जहाँ बड़े तूफ़ानों में बड़े बड़े पेड़ अहंकार और अकड़ से खड़े रहते है और टूट कर गिर जाते है। वहीं दूर्वा अपना सर झुका लेती हैं, इस कारण उसे कोई नुकसान नहीं होता।
3. एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक अनलासुर नाम का असुर था। उसके कोप से तीनों लोको में त्राहि त्राहि मची हुई थीं क्योंकि वो मनुष्यो को ज़िंदा निगल जाता था। इस असुर के अत्याचारों से दुःखी होकर सभी देवी देवता और मनुष्य भगवान शिव के पास कैलाश पहुँचे और उन्हें अनलासुर से बचाने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवताओ से कहा की अनलासुर का वध बस गणेश जी ही कर सकते है। तब सभी देवताओँ ने गणेश जी से प्रार्थना की कि वो उन्हें बचाएँ। तब गणेश जी ने अनलासुर को निगल लिया। पर वो दुष्ट अहंकारी दैत्य गणेश जी के पेट में जाते ही गणेश जी का पेट जलने लग गया। बहुत उपायों के बाद भी उनकी जलन शांत नहीं हुई। तब ऋषि कश्यप ने गणेश जी को दूर्वा की 21 गाँठे बनाकर खाने को दी। गणेश जी के दूर्वा को खाते ही उनके पेट की जलन शांत हो गयी। ऐसी मान्यता है की तबसे ही गणेश जी के पूजा में दूर्वा चढाने की परंपरा आरम्भ हुई।
दूर्वा की बिना नहीं होती गणेश जी की पूजा पूरी
गणेश जी की पूजा नहीं होती दूर्वा के बिना पूरी। आइये जानते है इसकी कुछ विशेष कारण :-
1. एक तथ्य के अनुसार दूर्वा अजर अमर है। उसे कहीं से भी काट लो उसकी जड़े फिर से आ जाती हैं और चारो और फैलती हैं। अतः दूर्वा की तरह ही उनके भक्तों की भी कुल की वृद्धि हो और उन्हें भी सुख समृद्धि प्राप्त हो।
2. दूर्वा अनेक जड़ों से पैदा होती है उसी प्रकार मनुष्य भी सुख़ दुःख भोगने के लिए ही पैदा होता हैं। इस सुख़ दुःख के द्वन्द को दूर्वा के रुप में गणेश जी को समर्पित किया जाता हैं।
किस प्रकार दूर्वा को पूजा में लाएं
गणेश चतुर्थी सभी विघ्नों के नाश व मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। इसमें मोदक व 21 दूर्वा को मोलो से बांधकर व जल में डुबोकर गणेश जी के मस्तक पर चढ़ाना चाहिए। बहुत से मंदिरो में गणेश जी को दूर्वा का हार बनाकर भी चढ़ाया जाता है। दूर्वा का हार लोग खुद भी बनाकर चढ़ाते है। इसमें 21 दूर्वा को मोली से बांधकर उसमें एक लाल गुड़हल का फूल लगाकर गणेश जी को चढ़ाते है। वैसे गणेश जी 2 - 3 दूर्वा से भी प्रसन्न हो जाते है।