हिन्दू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व है। सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत मायने रखता है। हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है। इस साल करवा चौथ व्रत 4 नवंबर को रखा जाएगा। करवा चौथ के दिन स्त्रियां शिव, पार्वती, कार्तिकेय और गणेश के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए इस दिन व्रत रखती है।
करवा चौथ व्रत का महत्व
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय होने से पहले रखा जाता है और रात में चन्द्रमा के दर्शन करने और अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है। इसलिए चन्द्रमा को छलनी से देखने के बाद महिलाएं अपने पति को छलनी में दीपक रखकर देखती हैं और पति के हाथों जल पीकर उपवास खोलती हैं। मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा की पूजा से पति की आयु लंबी होती है और वैवाहिक जीवन सुखी रहता है।
कब से मनाया जाता है करवा चौथ
करवा चौथ व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। महाभारत की कथा में भी करवा चौथ व्रत का उल्लेख मिलता है। मान्यता के अनुसार जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या कर रहे थे तब बाकी पांडवों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। जब द्रोपदी ने यह बात श्रीकृष्ण को बताई तब श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को करवा चौथ व्रत रखने की सलाह दी थी। इसके बाद द्रौपदी ने पहली बार करवा चौथ का व्रत किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार एक साहूकार की करवा नाम की बेटी थी। करवा अपने सात भाइयों की अकेली बहन थी और करवा के भाई उससे बहुत प्रेम करते थे। एक बार करवा ने अपने मायके में करवा चौथ का व्रत किया। जब रात में सभी भाई खाना खा रहे थे तो उन्होंने करवा से भी खाना खाने के लिए कहा। लेकिन करवा ने यह कहकर खाना खाने से मना कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चांद को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खाएगी। भाइयों से सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत देखी गई। तब सबसे छोटा भाई ने दूर एक पीपल के पेड़ पर एक प्रज्वलित दीपक लेकर चढ़ गया। भाइयों ने करवा से कहा कि चांद निकल आया है, अपना व्रत तोड़ लो। तब करवा ने प्रज्वलित दीपक को चाँद समझ कर अपना व्रत तोड़ा और खाना खा लिया। भोजन का पहला निवाला खाते ही करवा को उसके पति के मौत की खबर मिली। करवा अपने पति का शव लेकर एक साल तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को उसने फिर से पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत किया। जिसके फलस्वरूप करवा का पति फिर से जीवित हो गया।