हिन्दू धर्म में सूर्यदेव को सृष्टि के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार यदि पूरे विधि-विधान और श्रद्धाभाव से सूर्यदेव की उपासना की जाए तो मनुष्य के जीवन सभी कार्य संपन्न हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि प्रतिदिन सुबह सूर्यदेव को अर्घ दिया जाए तो सूर्यदेव की कृपा सदैव बनी रहती ही। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नियमित रूप से सूर्य कवच का पाठ करने से आरोग्य प्राप्त होता है और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। प्रात:काल सूर्य को नमस्कार करने के बाद सूर्य कवच का पाठ करना चाहिए। रविवार को सूर्य कवच का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है। विधि-विधान से शुभ मुहुर्त में सूर्य कवच धारण करना शुभ होता है।
यदि इस कवच का पाठ पूर्ण श्रद्धा और सच्चे भक्ति भाव से किया जाए सूर्यदेव आपको हर तरह के शत्रु और संकट से बचाते हैं और इससे जातक और उसके परिवार के स्वस्थ, सुख और धन में वृद्धि होती है। इस कवच के पाठ से सूर्यदेव मनुष्य को सभी आपदाओं, संकट, दरिद्रता, शत्रुओं और बुरी शक्तियों से बचाते हैं। सूर्यकवच के पाठ से शनि की छाया भी समाप्त होती है।
सूर्यकवच याज्ञवल्क्य जी द्वारा रचित है। ऐसा कहा जाता है कि इस कवच में याज्ञवल्क्यजी कहते हैं कि -
हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है। चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण वाले सूर्य देव का ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।
मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें।
नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।
मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।
याज्ञवल्क्य उवाच-
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् !
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम् !!1
याज्ञवल्क्य जी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ!
सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।
देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम!
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् !!2
चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।
शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:!
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: !!3
मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।
ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:!
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: !!4
मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।
सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके!
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: !!5
सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:!
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति !!6
स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है।
वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।
!! इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं !!