शारदीय नवरात्रि खत्म होने के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। पूरे देश में दशहरा पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। जब भी रावण का नाम लिया जाता है तो उसे एक दुराचारी और पापी के रूप में देखा जाता है। रावण ने माता सीता का हरण किया था जिसकी वजह से श्रीराम ने उसका वध किया था। आपने रावण के बारे में कई कथाएँ सुनी होंगी जिनमें इस बात का उल्लेख है कि रावण बहुत अहंकारी था और उसे किसी का भय नहीं था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण एक बहुत बड़ा शिवभक्त था और उसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त था। रावण बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी भी था। वह शास्त्र, वास्तु और ज्योतिष विद्या का ज्ञाता था और उसने रावण संहिता नाम की ज्योतिष की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक की रचना भी की थी। आज के इस लेख में हम आपको दशानन रावण से जुड़ी ऐसी रोचक बातें बताएंगे जो आपने पहले कभी नहीं सुनी होंगी -
रावण को यह नाम शिवजी से मिला था। रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था और वह शिवजी को कैलाश से उठाकर लंका ले जाना चाहता था। इसके लिए उसने कैलाश पर्वत उठा लिया था। लेकिन शिवजी ने अपना अपना पाँव रखकर रावण की ऊँगली कुचल दी और ऐसा होने से रोक लिया। तब रावण ने पीड़ा में तांडवस्त्रोतम का प्रदर्शन किया जिससे शिवजी बहुत प्रभावित हुए और उसे यह नाम दिया।
रावण अत्यंत शक्तिशाली तो था ही लेकिन इसके साथ-साथ वह बहुत बुद्धिमान था। ग्रंथों के अनुसार रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था। यही नहीं, रावण को कई तंत्र विद्याओं पर सिद्धि हासिल थी। रावण ने तांडव स्तोत्र, अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी।
रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने नवग्रहों को अपने आधीन कर लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मेघनाथ का जन्म हुआ था तब रावण ने सभी ग्रहों को मेघनाथ के 11वें स्थान पर रहने को कहा था ताकि वह अमर हो सके। लेकिन शनिदेव ने ऐसा करने से मना कर दिया और 12वें स्थान पर विराजमान हो गए तब रावण ने क्रोध में आकर शनिदेव को कारावास में डाल दिया था।
रावण एक बहुत बड़ा और कुशल राजा था। रावण की नगरी लंका के सभी नागरिक बहुत खुश रहते थे और उसका आदर करते थे। जब रावण मृत्यु शैय्या पर पड़ा था तब भगवन राम ने लक्ष्मण जी को रावण के पास भेजा था ताकि वे रावण से कूटनीति और विद्याएँ सीख सकें।
रावण के 10 सिरों कई कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ कथाओं के अनुसार रावण के दस सिर नहीं थे बल्कि वह 9 मोतियों की माला से बना एक भ्रम था जो रावण की माता ने उसे दिया था। वहीं कुछ कथाओं में बताया गया है कि जब रावण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप कर रहा था तब उसने खुद अपने सिर को धड़ से अलग कर दिया था। शिवजी उसकी भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और हर टुकड़े से एक सिर बना दिया था। इस तरह से रावण के पास दस सिर थे।