शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने और दुख व निर्धनता को दूर करने के लिए शनिवार का व्रत करने का विधान हैं। शनि से पीड़ित व्यक्ति को अपने कल्याण के लिए शनिवार का व्रत करना चाहिए। शनि का व्रत निर्दोष शनिवार से शुरू करना सर्वोत्तम माना गया है। वैसे तो किसी भी वार का व्रत शुक्ल पक्ष के पहले वार से शुरू करना चाहिए। वहीं बढ़ते चांद के दिन यानी कि शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार का व्रत शुरू किया जा सकता है।
पंचांग या फिर किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य से विचार-विमर्श कर व्रत शुरू करना चाहिए। व्रत की सफलता के लिए जरूरी है कि निर्दोष वार एवं शुभ मुहूर्त में ही व्रत प्रारम्भ किया जाए। बता दें कि शनि प्रदोष से भी आप शनिवार व्रत शुरू कर सकते हैं। आइए जानते हैं शनिवार व्रत शुरू करने की विधि और महत्व के बारे में।
ऐसे शुरू करें शनिवार का व्रत
शनिवार के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर अपने इष्टदेव, गुरु आदि का आशीर्वाद लेकर व्रत का संकल्प लें। फिर गणेश भगवान का स्मरण करते हुए नवग्रहों को नमस्कार करें। इसके बाद पीपल या शमी के वृक्ष के नीचे लोहे या मिट्टी का कलश रखकर उसमें सरसों का तेल भलकर उसके ऊपर शनिदेव की लोहे की मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित करें। शनिदेव को काले वस्त्र पहनाएं और कलश को काले कंबल से ढक दें।
फिर शनि की प्रतिमा को स्नान आदि करवाकर रोली, अक्षत्, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। इसके बाद पीपल या शमी के वृक्ष का भी समान विधि से पूजन करें। किसी पात्र में काली इलायली, लौंग, काला तिल, लोहे की वस्तु, कच्चा दूध और गंगाजल डालकर पश्चिम दिशा की तरफ मुख करने शमी या पीपल के पेड़ पर अर्पित करें। फिर वृक्ष के तने पर तीन तार का सूत आठ बार लपेटें और पेड़ की परिक्रमा करें। इसके बाद रुद्राक्ष की माला से शनि मंत्र का जप करें।
मंत्र जप के बाद शनि कथा का पाठ करें और काले कुत्ते को मिठाई, उड़द की दाल, तेल में पके पकवान खिलाएं। यदि कुत्ता न हो तो डाकौत या फिर किसी दीन ब्राह्मण को यह वस्तुएं दान कर दें। इस तरह से पूजा संपन्न करने के बाद शनिदेव के मंत्र का जप करें। दिनभर निराहार रहने के बाद शाम को सूर्यास्त से पहले कुछ खाकर अपना व्रत खोलें। व्रत का पारण करने के दौरान भोज्य सामग्री में तिल व तेल से बनी वस्तुएं जरूर शामिल करें। दिन भर में जितना हो सके, यथाशक्ति 'ओम् शं शनैश्चराय नमः' मंत्र का जाप करें।
व्रत के दौरान शनिदेव के दस नाम:- कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोन्तको यमः। सौरिः शनैश्चरो मंदः पिप्पलादेन संस्तुतः।। मंत्र का जाप करें। इस व्रत को करने से व्यक्ति को शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव से तथा गोचरीय अशुभ परिणामों से छुटकारा मिलता है।