भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। सिर्फ एक लोटा जल अर्पित करने मात्र से ही भगवान शिव अपने भक्तों की मनोकामना पूरी कर देते हैं। इसलिए भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। वैसे तो हमारे देश में भगवान शिव को समर्पित कई मंदिर हैं। जहां श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। लेकिन धार्मिक लिहाज से काशी नगरी का अपना विशेष महत्व माना जाता है। काशी को भगवान शिव की नगरी भी मानी जाती है।
बता दें कि भोलेनाथ की नगरी काशी में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है। जिसके बारे में बताया जाता है कि यहां पर दर्शन करने से श्रद्धालु को केदारनाथ धाम से 7 गुना अधिक पुण्य फल मिलता है। साथ ही यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। तो आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में...
केदारेश्वर महादेव मंदिर
काशी को भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव काशी में विभिन्न रूपों में विराजमान हैं। जिनमें से सबसे अहम मंदिर काशी का विशेश्वर मंदिर है। इसके अलावा काशी में त्रिलोचन महादेव, तिलभंडेश्वर महादेव और केदारनाथ धाम से अधिक पुण्य फल देने वाला केदारेश्वर मंदिर भी है। केदारेश्वर मंदिर सोनारपुरा रोड के पास केदार घाट पर स्थित है। यह काशी के प्राचीन मंदिरों में से एक है। बताया जाता है कि इस मंदिर में शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। इसके साथ ही इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि यहां पर दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को केदारनाथ मंदिर से 7 गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।
खिचड़ी खाने आते हैं भोलेनाथ
केदारेश्वर मंदिर की पूजन विधि भी अन्य मंदिरों से काफी अलग है। इस मंदिर में ब्राह्मण चार पहर की आरती करने के लिए बिना सिला हुआ कपड़ा पहनकर आते हैं। वहीं स्वयंभू शिवलिंग पर दूध, बेलपत्र, गंगाजल और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, केदारेश्वर मंदिर में स्वयं भोलेनाथ खिचड़ी का भोग ग्रहण करने आते हैं।
दो भागों में बंटा है शिवलिंग
काशी के केदारेश्वर मंदिर में मौजूद शिवलिंग की एक नहीं बल्कि कई महिमाएं सुनने को मिलती हैं। आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह न होकर इस मंदिर की शिवलिंग दो भागों में बंटा है। शिवलिंग के एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती हैं। वहीं शिवलिंग के दूसरे भाग में जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु अपनी अर्धांगिनी मां लक्ष्मी के साथ हैं।
तपस्या से हुए खुश
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ऋषि मांधाता ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने ऋषि को दर्शन दिए थे। तब भगवान शिव ने कहा कि चारों युगों में इसके चार रूप होंगे। जिसमें सतयुग में नवरत्नमय, त्रेता में स्वर्णमय, द्वापर में रजतमय और कलयुग में शिलामय होकर शिवलिंग शुभ मनोकामनाओं को प्रदान करेगा।