भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत करने से पहले भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, गजानन और एकदंत आदि नामों से जाना जाता है। वहीं तमाम भक्त भगवान गणेश की कृपा व आशीर्वाद पाने के लिए मंदिरों में जाते हैं। वैसे तो हमारे देश में भगवान गणेश को समर्पित तमाम मंदिर हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको गजानन के उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर परशुराम और गणेश में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भगवान गणेश का एक दांत टूट गया था। जिसके कारण उनका नाम एकदंत पड़ गया था।
3000 फीट की ऊंचाई पर है मंदिर
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में बैलाडिला की ढोलकल पहाड़ी पर भगवान श्रीगणेश का यह विशेष मंदिर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और मंदिर में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि मंदिर में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा ढोलक के आकार की है। जिसके कारण इस पहाड़ी का नाम ढोलकल पड़ गया।
जानिए ढोलकर मंदिर की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक इस पहाड़ी के शिखर पर श्रीगणेश और परशुराम जी में युद्ध हुआ था। युद्ध के दौरान परशुराम के फरसे से भगवान गणेश का एक दांत टूट गया था। जिसकी वजह से उनको गजानन एकदंत कहा जाता है। वहीं परशुराम के फरसे से गणेश जी का दांत टूटा, इसलिए पहाड़ी के शिखर के नीचे बसे गांव का नाम फरसपाल पड़ गया।
बता दें कि ढोलकट्टा (ढोलकल) की महिला पुजारी से दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति मानते हैं। इसी की याद में छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर गजानन की प्रतिमा स्थापित की थी। वहीं पुरातत्ववेत्ताओं के मुताबिक इस शिखर पर ललितासन मुद्रा में विराजमान दुर्लभ गणेश भगवान की प्रतिमा करीब 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। यहां पर रहने वाले लोग 12 महीने ढोलकर मंदिर में श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करते हैं। वहीं फरवरी महीने में यहां पर मेले का आयोजन होता है।