हिरण्यगर्भ से अस्तित्व में आए इस संसार के सभी रूप शक्ति का ही परिणाम है। हमारा सख्त संचार, श्वास प्रणाली, हृदय की धड़कन, नाड़ी की गति, शरीर संचालन और प्राण, सब कुछ शक्ति के कारण ही संभव हो पाता है। मानव शरीर के पंचतत्व भी शक्ति से ही बने हैं। विज्ञान के अनुसार भी संसार के सभी द्रव्य ऊर्जा की संहति के ही परिणाम हैं। यहाँ तक कि पदार्थों का स्वरूप परिवर्तन भी ऊर्जा के कारण ही संभव होता है।
प्रसिद्ध अंतरिक्षवैज्ञानिक, डॉ ओम प्रकाश पांडेय के अनुसार जिस प्रकार अतिशय शुद्धता की स्थिति में कोई भी निर्माण नहीं हो सकता, इसी प्रकार साम्यावस्था में प्रकृति से सृष्टि से संभव नहीं है। आदिशक्ति के तीनों रूपों, उनके तीनों गुणों और तीन क्रियात्मक वेगों के परस्पर संघात से समस्त सृष्टि की रचना होती है। तीन का तीन में संघात होने से नौ का यौगिक बन जाता है, यही सृष्टि का पहला गर्भ होता है।
पौराणिक ग्रंथों में शक्ति के क्रियात्मक मूल स्वरूपों को ही सरस्वती, लक्ष्मी और दूर्गा के मानवीय रूपों के माध्यम से उनके गुणों और क्रिया सहित व्यक्त करने का प्रयास किया। आदिशक्ति को जगजननी कहा गया है। वैदिक संकल्पना के अनुसार ईश्वर अकल्पनीय और निराकार इसलिए उसकी कोई मूर्ति या आकार नहीं हो सकता। यही कारण है कि देवी की पिंडी स्वरूप में पूजा की जाती है क्योंकि वह गर्भ का स्वरूप है।
नौ अंक का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
ईशावास्योपनिषद के अनुसार एक स्त्री गर्भ धारण करती है और संतान को जन्म देती है। स्त्री के गर्भ से जन्म लेने वाली संतान और स्त्री पूर्ण रहती है इसलिए माँ को ईश्वर का स्वरूप कहा गया है। नौ दूर्गा, उनके नौ प्रकार और उनके प्रकार की ही काल और समय में नौ ऊर्जाएं हैं। भौतिक ऊर्जाएं भी नौ ही हैं क्योंकि यह उनका ही विकार है। इन भौतिक ऊर्जाओं के आधार पर सृष्टि की जो आकृति बनती है, वह भी नौ प्रकार की ही है, इसमें नौवाँ प्रकार है - ग्रह-नक्षत्र। जैविक सृष्टि भी नौ प्रकार ही हैं। पृथिवी का स्वरूप भी नौ प्रकार का ही है। इसी प्रकार स्त्री की अवस्थाएं, उनके स्वभाव, नौ गुण, सभी कुछ नौ ही हैं। इसी प्रकार सभी महत्वपूर्ण संख्याएं भी नौ या उसके गुणक ही हैं। मानव मन में भाव नौ हैं, यही कारण है कि ऋषियों ने नौ दिनों के नवरात्र मनाने की परंपरा बनाई।
शारदीय नवरात्रि का महत्व
प्रत्येक वर्ष में 40 नवरात्र होते हैं लेकिन दो नवरात्र महत्वपूर्ण हैं – चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र। नौ दिन व्रत रह कर अपनी जठराग्नि अधिक तेज किया जाता है। सभी नवरात्रों में शारदीय नवरात्र अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। शारदीय नवरात्र से पहले ही गुरू पूर्णिमा, रक्षा बंधन आदि सभी महत्वपूर्ण त्यौहार पड़ते हैं। वर्षा के चार महीने बाद फिर से गतिविधियां प्रारंभ की जाती हैं इसलिए शारदीय नवरात्र में शक्ति की आराधना की जाती है।