नवरात्री के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी ने महिषासुर नाम के असुर का वध किया था। जिस कारण मां कात्यायनी को दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है। माना जाता है महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। इनका शरीर सोने की तरह चमकीला है। मां कात्यायनी को शहद या शहद से बनी चीजें और पान का भोग लगाया जाता है। इस दिन विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तथा सभी कष्टों का नाश होता है। मां कात्यायनी बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इन्हें युद्ध की देवी भी कहा जाता है। माता को पीला रंग अत्यंत प्रिय है, इस दिन पीला वस्त्र धारण कर माता को पीला फूल अर्पित करने और मिठाई का भोग लगाने से मां जल्दी प्रसन्न होती हैं। वहीं वैवाहिक जीवन के लिए भी माता की पूजा फलदायी होती है। यदि कुण्डली में विवाह के योग छीण हो तो भी विवाह हो जाता है।
माता का स्वरूप
मां कात्यायनी देवी का रूप बहुत आकर्षक है। माता का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। मां कात्यायनी का वाहन सिंह है।
मां कात्यायनी की कथा
मां दुर्गा के इस स्वरूप की प्राचीन कथा इस प्रकार है कि एक प्रसिद्ध महर्षि जिनका नाम कात्यायन था, ने भगवती जगदम्बा को पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठिन तपस्या की। कई हजार वर्ष कठिन तपस्या के पश्चात् महर्षि कात्यायन के यहां देवी जगदम्बा ने पुत्री रूप में जन्म लिया और कात्यायनी कहलायीं। ये बहुत ही गुणवंती थीं। इनका प्रमुख गुण खोज करना था। इसीलिए वैज्ञानिक युग में देवी कात्यायनी का सर्वाधिक महत्व है।मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिन जातक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने के कारण मां कात्यायनी के सहज रूप से दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
कात्यायनी देवी पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और फिर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- मां की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं।
- मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
- मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- मां को रोली कुमकुम लगाएं।
- मां को पांच प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाएं।
- मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
- मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- मां की आरती भी करें। बता दें बिना आरती के माता की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती इसलिए आरती करना ना भूलें।
मां कात्यायनी मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कात्यायनी की आरती-
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी
जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा
वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है
यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी
कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते
हर मंदिर में भगत हैं कहते
कत्यानी रक्षक काया की
ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली
अपना नाम जपाने वाली
बृहस्पतिवार को पूजा करिए
ध्यान कात्यायनी का धरिए
हर संकट को दूर करेगी
भंडारे भरपूर करेगी
जो भी मां को 'चमन' पुकारे
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।