भारत देश में अलग-अलग धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं। साथ ही इससे जुड़ी कई मान्यताएं भी लोगों के बीच प्रचलित हैं। हर धर्म के के अपने-अपने नियम होते हैं। इन नियमों का पालन करना उस धर्म के लोगों के लिए काफी अहम होता है। वहीं अगर सिख धर्म की बात करें तो सिख धर्म के अनुयायियों को अपने धर्म से जुड़े कई नियमों का पालन करना पड़ता है। इन्हीं में से एक नियम होता है कृपाण रखना।
आपने भी देखा होगा सिख अपने पास हमेशा एक छोटा सा चाकू देखा होगा। यह चाकू लड़के और लड़कियों दोनों के पास होता है। सिख धर्म में इस चाकू को कृपाण कहा जाता है। वैसे तो कृपाण रखने का एक सरल कारण आत्मरक्षा होता है। लेकिन इसको रखने का एक धार्मिक कारण भी होता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि सिख धर्म में कृपाण रखने क्या का धार्मिक महत्व होता है।
कृपाण की अहमियत
आपको बता दें सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म का पालन करने वालों के लिए 5 चीजें सबसे अहम बताई हैं। इन पांच चीजों में कड़ा, कृपाण, केश, कंघा और कच्छा हैं। अगर कृपाण की बात करें, तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है। कृपाण में दो शब्द 'कृपा' और 'आन' है। सिख धर्म में कृपाण रखने को 'अमृत छकना' कहा जाता है।
कृपाण रखने की शुरूआत तब हुई थी, जब गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन गुरु गोविंद सिंह ने पांच सिख सजाए थे। उन सिखों को अमृत छकाया गया था। वहीं अमृत छकने की भी एक प्रक्रिया होती है, सिखों के पवित्र धार्मिक माह में यह विधि की गई थी।
सिख धर्म की विधि के मुताबिक पाठ करने के दौरान ही गुरबानी पढ़ते हुए एक बर्तन में बताशे घोले जाते हैं। जब यह बताशे पूरी तरह से घुल जाते हैं तब यह सिखों को खिलाया जाता है। इस विधि को पूरा करते हुए सिख गुरु गोबिंद सिंह ने पांच सिखों को अमृत छकाया था और उनको सिख नियमों से बांधा था।
इसमें विशेष बात यह है कि जो भी सिख इस अमृत को छकता है, उनके लिए बाल कटवाना, झूठा खाना और नॉनवेज खाना वर्जित हो जाता है। वहीं अमृत छकने वाले सिखों को गुरबानी का पाठ करना बेहद जरूरी होता है। साथ ही कृपाण रखने वाले सिखों को इन सभी नियमों का पालन करना होता है।