जब भी हम किसी शिव मंदिर में दर्शन व पूजन करने के लिए जाते हैं, तो वहां पर सिर्फ भगवान शिव विराजमान होते हैं। जैसा कि हम सभी को मालूम है कि देशभर में 12 ज्योतिर्लिंग है। हर एक ज्योतिर्लिंग की अपनी कहानी और मान्यता है। लेकिन आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको एक ऐसे ज्योतिर्लिंग के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां शिवलिंग पर भगवान शिव के साथ मां पार्वती की भी पूजा की जाती है। दरअसल, इस ज्योतिर्लिंग का नाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है।
बता दें कि मल्लिकार्जुन शब्द में मल्लिका का अर्थ है मां पार्वती और अर्जुन का अर्थ है भगवान शिव से हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस ज्योतिर्लिंग के नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मां पार्वती और भगवान शिव का है। ऐसे में हम आपको इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कुछ रोचक बातों के बारे में बताने जा रहे हैं और साथ ही यह भी जानेंगे कि इसकी स्थापना कैसे हुई थी।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दूसरा ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले श्रीशैलम नामक पर्वत पर स्थित है। यह भगवान शिव को समर्पित प्राचीन और फेमस तीर्थस्थल है। भगवान गणेश और कार्तिकेय स्वामी की इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी एक रोचक कथा है।
प्राचीन कहानी
भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय और श्री गणेश हैं। जब कार्तिकेय और गणेश जी विवाह के योग्य हुए। तो मां पार्वती और भगवान शिव ने दोनों की शादी कराने की सोची। ऐसे में भगवान शंकर ने गणेश और कार्तिकेय को बुलाया और उनके विवाह के बारे में बताते हुए शर्त बताई। भगवान शिव ने दोनों को शर्त बताते हुए कहा कि जो भी इस संसार की पहले परिक्रमा करके वापस आएगा, वह पहले उस पुत्र की शादी कराएंगे। यह सुनकर कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर पर सवार होकर संसार की परिक्रमा लगाने चले गए।
वहीं भगवान गणेश का वाहन मूषक था, ऐसे में वह सोचने लगे कि वह कार्तिकेय से पहले संसार की परिक्रमा कैसे कर पाएंगे। ऐसे में उन्होंने अपने माता-पिता यानी की भगवान शिव और मां पार्वती की परिक्रमा कर ली। भगवान गणेश ने कहा कि उनके लिए तो शिव-पार्वती ही पूरा संसार हैं। गणेश की बात सुनकर भगवान शिव और मां पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश जी का पहले विवाह करा दिया। वहीं जब कार्तिकेय जी वापस आए, तो उन्होंने देखा कि श्रीगणेश का विवाह संपन्न हो चुका है।
जब सारी बात कार्तिकेय को पता चली तो वह अत्यंत क्रोधित हुए और क्रोध में कैलाश छोड़कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। यह पर्वत आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। वहीं इस पर्वत को श्रीशैल और श्रीपर्वत के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव और मां पार्वती ने कार्तिकेय को मनाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानें। जब शिव पार्वती को लगा कि अब कार्तिकेय वापस कैलाश नहीं आएंगे, तो उन्होंने तय किया कि वह अपने पुत्र से मिलने समय-समय पर वहां जाएंगे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसके बाद भगवान शिव और मां पार्वती रूप बदलकर कार्तिकेय स्वामी को देखने पहुंचते थे। जब कार्तिकेय स्वामी को यह पता चला, तो उन्होंने वहां पर एक शिवलिंग स्थापित किया और इसी शिवलिंग में भगवान शिव और मां पार्वती ज्योति रूप में विराजमान हो गए। मान्यता है कि आज भी हर अमावस्या को भगवान शिव और पूर्णिमा पर मां पार्वती कार्तिकेय स्वामी से मिलने श्रीपर्वत पर पहुंचते हैं।