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Shanivar Puja: शनिवार को हनुमान जी की पूजा से प्रसन्न होते हैं शनिदेव, जानिए क्या है वजह

By Astro panchang | Jul 14, 2023

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित होता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करता है तो उसका शनिदोष दूर होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा क्यों होती है और इसके पीछे क्या कारण है। बता दें कि शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा होने के पीछे एक पौराणिक कथा है। आइए जानते हैं उस पौराणिक कथा के बारे में...

बंदी बने थे शनिदेव
दरअसल, जब मां सीता की खोज करते हुए हनुमान लंका पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शनिदेव जेल में बंद थे। तब हनुमान जी ने शनिदेव को वहां से मुक्त कराते हुए बंदी होने का कारण पूछा। तो शनिदेव ने बताया कि लंकापति रावण ने अपना मायाजाल बिछाकर उन्हें बंदी बना लिया था। जब हनुमान जी ने उन्हें मुक्त कराया तो शनिदेव ने कोई वरदान मांगने के लिए कहा। जिस पर पवनपुत्र हनुमान ने कहा कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करेगा वह उसे दंड नहीं देंगे। 

शनिवार को सुंदरकांड का पाठ
वहीं हनुमान जी ने शनिदेव को जिस दिन रावण के चुंगल से मुक्त कराया था। वह दिन शनिवार का था। शनिदेव ने पवनपुत्र हनुमान से खुश होकर उन्हें आशीर्वाद दे दिया। जो भी शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करेगा। शनिदेव उसे दंडित नहीं करेंगे। तभी से शनिवार के लिए हनुमान जी भी पूजे जाने लगे। जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करता है, उससे शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।

शनिदेव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। 
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ ॥ 
जय जय श्री शनिदेव..॥ 
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी। 
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ ॥ 
जय जय श्री शनिदेव..॥ 
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी। 
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ ॥ 
जय जय श्री शनिदेव..॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी। 
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ ॥ 
जय जय श्री शनिदेव..॥ 
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी। 
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ ॥ 
जय जय श्री शनिदेव..॥ 

हनुमान जी की आरती
श्री हनुमंत स्तुति॥ 
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं, जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥ 
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥ ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की । 
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ 
जाके बल से गिरवर काँपे । 
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥ 
अंजनि पुत्र महा बलदाई । 
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की ॥ 
दे वीरा रघुनाथ पठाए । 
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥ 
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । 
जात पवनसुत बार न लाई ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की ॥ 
लंका जारि असुर संहारे । 
सियाराम जी के काज सँवारे ॥ 
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे । 
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की ॥ 
पैठि पताल तोरि जमकारे । 
अहिरावण की भुजा उखारे ॥ 
बाईं भुजा असुर दल मारे । 
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की ॥ 
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें । 
जय जय जय हनुमान उचारें ॥ 
कंचन थार कपूर लौ छाई । 
आरती करत अंजना माई ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की ॥ 
जो हनुमानजी की आरती गावे । 
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥ 
लंक विध्वंस किये रघुराई । 
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥ 
आरती कीजै हनुमान लला की । 
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥ ॥ इति संपूर्णंम् ॥

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