हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल पौष मास की पूर्णिमा तिथि को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। इसलिए इसको शाकंभरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस साल 25 जनवरी 2024 को शाकंभरी पूर्णिमा मनाई जा रही है। आपको बता दें कि मां शाकंभरी के शरीर की कांति नीले रंग की है। मां शाकंभरी के नेत्र नीलकमल के समान है।
बता दें कि मां की नाभि नीची है और त्रिवली से विभूषित मां का उदर सूक्ष्म है। मां शाकंभरी कमल के फूल में निवास करती हैं। उनके हाथों में बाण, प्रकाशमान और शाकसमूह धारण करती है। मां शाकंभरी को गौरी, सती, चण्डी, उमा, कालिका और पार्वती आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
मां शाकंभरी का स्वरुप
मां शाकंभरी को वनस्पतियों और शाक-सब्जियों की देवी कहा गया है। यह मां पार्वती का स्वरूप हैं। इनको अनकों नामों से जाना जाता है। मां शाकंभरी को शताक्षी और वनशंकरी भी कहा जाता है। शाकंभरी माता को भागवत महापुराण में देवी दुर्गा का ही स्वरूप बताया गया है। भागवत महापुराण के मुताबिक शिवजी को पति रूप में पाने के लिए मां पार्वती ने कठोर तप किया। मां पार्वती ने अन्न-जल का त्याग कर दिया था। तब उन्होंने जीवित रहने के लिए शाक-सब्जियां खाई थीं। इस कारण मां पार्वती का नाम शाकंभरी पड़ा।
वहीं अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक जब पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। तब मुनियों व तवस्वियों ने मानव जनजीवन के कष्टों को देखते हुए मां से प्रार्थना की। तब मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उतपन्न शाकों द्वारा इस संसार का भरण-पोषण किया। इस तरह से मां शाकंभरी ने सृष्टि को नष्ट होने से बचाया। इसलिए शाकंभरी जयंती के मौके पर फल-फूल और हरी सब्जियों का दान करना सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है।
पूजा का महत्व
पौष पूर्णिमा के दिन जो भी व्यक्ति मां शाकंभरी की पूजा विधिविधान से करता है। वह जल्द ही अन्न, पान और अमृतरूप अक्षत फल प्राप्त करता है। भक्ति और श्रद्धाभाव से की गई मां की उपासना से व्यक्ति के सभी मनोरथ पूरे होते हैं। साथ ही जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
ऐसा करें पूजा
इस दिन सुबह स्नान आदि कर सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें और फिर मां शाकंभरी का ध्यान करें। एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां शाकंभरी की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद मां को मौसमी सब्जियां और ताजे फल अर्पित करें। इसके बाद विधि-विधान से पूजा करें और प्रसाद में फल, शाक, सब्जी, मिश्री, हलवा-पूरी और मेवे आदि का भोग लगाएं। फिर आरती कर पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमा मांगे। पौष पूर्णिमा के दिन भगवान मधुसूदन की पूजा करने से विशेष आशीर्वाद मिलता है।
मां शाकंभरी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, पृथ्वी पर कई वर्षों तक बारिश न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ गया। जिसके कारण लोग जल को तरसने लगे। तब सभी भक्तों ने मां दुर्गा ने इस समस्या को खत्म करने के लिए प्रार्थना की। प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने शाकंभरी का अवतार लिया। फिर मां शाकंभरी के सौ नेत्रों से लगातार 9 दिनों तक पानी बरसता रहा। इससे पृथ्वी पर सूखे की समस्या खत्म हो गई और एक बार फिर पृथ्वी हरी-भरी हो गई। वहीं मां शाकंभरी अपने सौ नेत्रों के कारण शताक्षी कहलाई।