भगवान शिव के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह से पूजा करते हैं। सोमवार का दिन भोलेनाथ को समर्पित होता है। वहीं भगवान शिव के भक्त उनकी उपासना और पूजा के लिए युगों-युगों से कई स्त्रोत की रचना की है। भोलेनाथ को समर्पित कई ग्रंथों में कई तरह के स्तोत्र की रचनाओं का उल्लेख मिलता है। लेकिन भगवान शिव को सभी रचनाओं में शिव तांडव स्त्रोत सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं। इस स्त्रोत की रचना भगवान शिव के प्रिय भक्त रावण द्वारा रचित है।
मान्यता के अनुसार, जो भी भक्त सच्चे मन से शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करता है, भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि दशानन ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना कब और कैसे की थी।
ऐसे हुई शिव तांडव स्तोत्र की रचना
बता दें कि ऋषि विश्रवा की दो पत्नियां थीं और उनकी दो संतानें थी। जिनमें से एक का नाम कुबेर और दूसरे पुत्र का नाम दशानन था। लेकिन ऋषि विश्रवा ने कुबेर को लंका का सारा राजपाट ले दिया। लेकिन कुबेर लंका का राजपाट छोड़कर हिमाचल में तपस्या करने चले गए। जिसके बाद कुबेर का राजपाट दशानन को मिल गया। लंका का राजपाट मिलने के बाद रावण अहंकारी हो गया। वह अहंकार में आने के कारण ऋषियों और साधुओं पर अत्याचार करने लगा। जब रावण के अत्याचारों का पता कुबेर को चला, तो उन्होंने दशानन को समझाने का प्रयास किया। ऐसे में नाराज होकर दशानन ने कुबेर की नगरी अलकापुरी पर आक्रमण कर दिया।
इस युद्ध में कुबेर को हराकर दशानन ने पुष्पक विमान छीन लिया और लंका ले जाने लगे। तभी रास्ते में कैलाश पर्वत आ गया और पुष्पक विमान रुक गया और आगे नहीं बढ़ पाता। जिसके बाद रावण कैलाश पर्वत को रास्ते से हटाने की कोशिश करने लगा। जिससे पर्वत हिलने लगता है और सभी शिवगण दशानन के पास आते हैं और रावण को ऐसा करने से रोकते हैं। लेकिन हठी रावण नंदी का अपमान कर कैलाश पर्वत को फिर से हटाने लगते हैं।
वहीं भगवान शिव भी रावण की सारे हरकतों को देख रहे थे। ऐसे में रावण के घमंड को तोड़ने के लिए भोलेनाथ अपने पैर के अंगूठे का हल्का सा स्पर्श पर्वत पर करते हैं। जिससे पर्वत का भार इतना अधिक हो जाता है कि रावण उसने नीचे दबने लगा और बुरी तरह से घायल हो गया। ज्यादा दर्द के कारण वह इतनी तेज-तेज से चिल्लाने लगा। उसकी चीत्कार इतनी भीषण थी कि ऐसा लग रहा था कि प्रलय आ जाएगी।
ऐसे में रावण ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव की स्तुति करने लगा। तब दशानन ने सामवेद में उल्लेखित भगवान शिव के सभी स्तोत्रों का गान करने लगा। रावण की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव कैलाश पर्वत से अपने पैर का अंगूठा हटा देते हैं और रावण को दर्द मुक्त कर देते हैं। दशानन द्वारा भयंकर दर्द में गाया गया स्त्रोत सामवेद का स्त्रोत है। इसी स्त्रोत को शिव स्त्रोत या रावण स्त्रोत के नाम से जाना जाता है।