भगवान भोलेनाथ को शीघ्र प्रसन्न होने वाला देवता माना जाता है। हांलाकि उनकी पूजा के कई विधि और नियम बताए जाते हैं और भगवान शिव की आराधना के लिए कई स्त्रोतों की रचना भी की गई है। लेकिन अन्य सभी स्त्रोतों में भगवान शिव को शिवतांडव स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रिय है। मान्यता के अनुसार, शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बता दें कि लंकापति रावण द्वारा यह स्त्रोत रचित है और भगवान शिव के द्वारा ही रावण का नाम दशानन रखा गया। तो आइए जानते हैं कि रावण ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना क्यों और कैसे की थी।
रावण के अत्याचार
ऋषि विश्रवा की कुबेर व रावण दोनों संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। जब ऋषि विश्रवा ने कुबेर को सोने की लंका का राज्य दिया था। लेकिन ऋषि विश्रवा के कहने पर कुबेर किसी कारणवश लंका का त्याग कर हिमालय चले गए। कुबेर के जाने से रावण अत्यधिक प्रसन्न हुआ और वह लंका का राजा बन गया। लंका को पाने के बाद रावण अंहकारी बनता चला गया और उसने साधुजनों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।
जब कुबेर को रावण के इन अत्याचारों की ख़बर लगी तो उन्होंने एक दूत को भाई को समझाने के लिए भेजा। दूत ने रावण को सत्य औऱ धर्म की राह पर चलने की सलाह दी। इस पर रावण को इतना क्रोध आया कि उसने कुबेर के दूत को बंदी बना लिया और उसकी हत्या कर डाली। साथ ही वह अपनी सेना को लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा। रावण ने कुबेर की नगरी पहुंच उसे तहस-नहस कर दिया और कुबेर को गदा के प्रहार से घायल कर दिया। लेकिन उनके सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन सही सलामत पहुंचाया।
रावण ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था। जिसके बाद वह एक दिन शारवन की तरफ पुष्पक विमान में सवार होकर चल पड़ा। लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरने पर पुष्पक विमान की गति अपने आप धीमी हो गई। क्योंकि पुष्पक विमान मन की गति से तेज और चालक की इच्छानुसार चलता था। इसलिए जब पर्वत के पास से निकलने पर विमान की गति धीमी हो गई तो रावण को काफी आश्चर्य हुआ। तब उसकी नजर विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पड़ी।
नंदी के चेताने पर भी नहीं माना लंकापति
रावण को रुका देख नंदीश्वर ने उसे चेताया कि भगवान शिव क्रीड़ा में मग्न हैं, इसलिए तुम वापस चले जाओ। लेकिन कुबेर पर विजय पाकर रावण इतना दंभी बन गया कि वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हुआ। रावण ने उस पर्वत का नामो-निशान मिटाने की बात कही, जिसने उसके विमान की गति में बाधा डाली। यह कहते हुए जब रावण ने पर्वत को उसकी नींव से उठाना चाहा तो इस विघ्न से भगवान शिव विचलित हो उठे। भगवान शिव ने पर्वत पर बैठे-बैठ अपने पांव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया जिससे कि वह पर्वत स्थिर हो जाए। भगवान शिव द्वारा पैर के अंगूठे से पर्वत दबाने से रावण की बाहें उस पर्वत के नीचे दब गई।
ऐसे किया शिव तांडव स्त्रोत की रचना
क्रोध और पीड़ा के कारण रावण चीत्कार उठा, तब उसके मंत्रियों ने रावण को शिव स्तुति करने की सलाह दी। जिससे कि भगवान शिव प्रसन्न हो सकें और उसे पर्वत से मुक्ति मिल सके। तब रावण ने बिना देर किए सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया। इससे भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण को क्षमा कर दिया और उसकी पीड़ा को खत्म कर दिया। तब से सामवेद का वह स्त्रोत रावण स्तोत्र या फिर शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है।