भगवान विष्णु की नगरी गया को पिंड दान के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। गया में हर साल पितृ पक्ष मेले का आयोजन किया जाता है। गया में लोग पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान करते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार हर साल भाद्रपद की शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष या महालय कहलाती है। इस दौरान पितरों को पिण्डदान और तर्पण करने का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार गया में पिंड दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे कि पिंडदान गया में ही क्यों किया जाता है -
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना के समय एक असुर की रचना कर दी, जिसका नाम गया रखा गया। वह असुर कुल में जरूर था लेकिन उसमें असुरों की कोई प्रवृत्ति नहीं थी। गया हमेशा देवताओं की पूजा-उपासना में लीन रहता था। एक दिन गया ने सोचा कि वह असुर कुल में पैदा हुआ है इसलिए शायद उसका सम्मान कभी नहीं किया जाएगा। उसने सोचा कि क्यों न वो इतना पुण्य कमा ले कि उसे स्वर्ग मिल जाए। इसी कामना में वो विष्णु जी की उपासना में लग गया।
विष्णु जी उसकी उपासना से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गया को वरदान दिया। विष्णु जी ने गया को वरदान दिया कि जो कोई भी उसे देखेगा, मात्र उससे ही व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाएंगे। यह वरदान पाकर वह घूम-घूम कर लोगों के पाप दूर करने लगा। चाहे व्यक्ति ने कितने भी पाप क्यों न किए हों, जिस किसी पर भी एक बार गया की नजर पड़ जाती तो उससे ही व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते थे।
यह देख यमराज काफी चिंतित हो गए। यमराज ने ब्रह्माजी से कहा कि गयासुर उनका सारा विधान खराब कर रहा है। क्योंकि यमराज ने सभी प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल भोगने की व्यवस्था की है। इसके बाद ब्रह्माजी ने एक योजना बनाई। उन्होंने गयासुर से कहा कि तुम्हारी पीठ बहुत पवित्र है, मैं और समस्त देवगण तुम्हारी पीठ पर यज्ञ करेंगे। लेकिन ऐसे में भी गयासुर अचल नहीं हुआ। तब गयासुर की पीठ पर स्वंय विष्णु जी आकर बैठे। उनका मान रखते हुए गया ने अचल होने का फैसला लिया। उसने विष्णु जी से वरदान मांगा कि उसे एक शिला बनाकर स्थापित कर दिया जाए। गयासुर ने यह वरदान भी मांगा कि भगवान विष्णु सभी देवताओं के साथ अप्रत्यक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें। मृत्यु के बाद यही स्थान धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थस्थल बनेगा। यह देख विष्णु जी काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने गयासुर को आशीर्वाद दिया कि जहां गया स्थापित हुआ है, वहां पितरों के श्राद्ध-तर्पण आदि किए जाएंगे और इससे मृत आत्माओं को मोक्ष की प्राप्त होगी।