वैसे तो भारत में कई अनोखे और प्राचीन मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। वहीं उज्जैन में महर्षि सांदीपनि ऋषि का आश्रम है। बता दें कि महर्षि सांदीपनी ऋषि के आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्रा सुदामा व भाई बलराम के साथ शिक्षा प्राप्त की थी। इस आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने 64 दिनों में 16 कलाओं और 64 विद्याओं का ज्ञान अर्जित किया था। यहां पर भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर मौजूद है, इस मंदिर का नाम पिंडेश्वर महादेव है। सिर्फ इस शिवालय में नंदी खड़े हुए रूप में पाए गए हैं।
जानिए क्या है इसके पीछे की मान्यता
पिंडेश्वर महादेव मंदिर में नंदी के खड़े रूप में होने के पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने के लिए महर्षि के आश्रम में पधारे थे। जब नंदी ने भगवान शिव और गोविंद यानी की भगवान श्रीकृष्ण को एक साथ देखा तो वह दोनों के सम्मान में उठकर खड़े हो गए। यही कारण है कि इस मंदिर में नंदी की प्रतिमा खड़ी हुई पायी जाती है। मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में इस शिव मंदिर की स्थापना हुई थी।
मंदिर की खासियत
बता दें कि महर्षि सांदीपनि आश्रम आज भी उतना ही अहम है, जितना कि यह द्वापर युग में हुआ करता था। इस आश्रम और भगवान शिव के मंदिर में दुर्लभ मूर्ति के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां पहुंचते हैं। पहले यह आश्रम चारों ओर से घने वनों और फलों के पेड़ों से घिरा रहता था। इस आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ उसी जंगल से लकड़ियां बीनकर ईंधन का इंतजाम करते थे।
इस मंदिर में नंदी का महत्व
आपने देखा होगा कि हर शिवालय में नंदी मुख्य रूप से पाए जाते हैं। नंदी महाराज को भक्ति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वह भक्तों की मनोकामनाओं को भगवान भोलेनाथ तक पहुंचाने का काम करते हैं। इसलिए भक्त शिव मंदिर में जाकर नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। वहीं भगवान शिव की सवारी के तौर पर भी नंदी की पूजा की जाती है। नंदी महाराज को भगवान शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है।