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Chaitra Navratri 2022: ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली माँ कुष्मांडा, आइये जानते हैं माता की पूजा का महत्व और विधि

By Astro panchang | Apr 04, 2022

नवरात्रि के चौथे दिन माता दुर्गा के 'कुष्मांडा'  रूप की पूजा की जाती है। अपनी मंद मुस्‍कान द्वारा ब्रह्मांड की उत्‍पत्ति करने के कारण देवी के इस रूप को कुष्मांडा कहा गया। ऐसी मान्‍यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसीलिए इन्‍हें सृष्टि की आदिशक्ति कहा गया है। मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा व जप माला हैं। देवी का वाहन सिंह है। देवी कुष्माण्डा की पूजा गृहस्थ जीवन में रहने वालों को जरूर करना चाहिए। देवी देवी संतान सुख के साथ वैवाहिक जीवन सुखी बनाने का आशीर्वाद देती हैं। रोग और शोक को हरने वाली देवी है। नवरात्रि में देवी की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है। देवी का निवास स्थान सूर्यमंडल के मध्य में माना जाता है। यह वह स्थान है, जहां कोई भी निवास नहीं कर सकता। ऐसी मान्यता है कि देवी कुष्मांडा में सूर्य के समान तेज है। वे अपनी चमक से पूरे ब्रह्मांड को जगमगा सकती हैं। आठ भुजाओं वाली मां कुष्मांडा कमंडल, धनुष, अमृत कलश, जपने माला, गदा और चक्र समेत अन्य सामग्रियां रहती है।
मां कुष्माण्डा की पूजा का महत्व
देवी की मंद मुस्कान और सृष्टि निर्माता है और इसी कारण वह कुष्माण्डा कहलाती हैं। देवी की पूजा सारे ही शोक को हर लेती है। रोग और संताप को दूर कर देवी आरोग्यता का वरदान देती हैं। मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होता है। साथ ही संतान और दांपत्य सुख का भी वरदान मिलता है। मां की वर मुद्र मनुष्य को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। मां कुष्माण्डा की पूजा से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है और मनुष्य को अपने जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। मान्यताओं के अनुसार देवी कूष्मांडा सूर्य तक को दिशा और ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं। ऐसे में जिनके कुंडली में सूर्य कमजोर होता है उन्हें देवी कूष्मांडा की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।
मां कूष्मांडा की पूजन विधि
मां कूष्मांडा की पूजा करने के लिए सबसे पहले चौकी पर माता कूष्मांडा की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। फिर, गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर कलश स्थापना करने के बाद वहीं पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्मांडा के साथ समस्त स्थापित देवताओं की पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि वगैराह करें। फिर प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
देवी कूष्मांडा के मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ध्यान मंत्र:

वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥

देवी कूष्मांडा की आरती:

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।

मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।

शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।

भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।

स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे।

सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।

पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।

क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।

दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।

मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।

भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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