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चैत्र नवरात्रि का पहला दिन! ऐसे करें माँ शैलपुत्री की पूजा-अर्चना, जानिए पूजा विधि, मंत्र और आरती

By Astro panchang | Apr 01, 2022

सनातन धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। शैल का मतबल होता है पर्वत। पर्वत अडिग है और उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भगवान की भक्ति का रास्ता चुनते हैं, तो हमें भी खुद को पर्वत की तरह अडिग रखना होता है। मन में भी भगवान के लिए अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। माता के दाहिने हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल विराजमान है। तथा माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन मां शैलपुत्री की अराधना करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है। मां शैलपुत्री को माता पार्वती का स्वरूप माना जाता है। इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना कर व्रत रखने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है व सभी कष्टों का निवारण होता है। माता शैलपुत्री का जन्म शैल या पत्थर से हुआ, इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। मां को वृषारूढ़ा, उमा नाम से भी जाना जाता है। उपनिषदों में मां को हेमवती भी कहा गया है।
शैलपुत्री व्रत पूजा की सामग्री
कलावा, लाल कपड़ा, चौकी, कलश, कुमकुम, लाल झंडा, पान-सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, जयफल, लौंग, मिश्री, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, केले, घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, ज्योत, मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, उपला, सूखे मेवे, मिठाई, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।
मां शैलपुत्री पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर एक चौकी पर देवी दुर्गा की प्रतिमा और कलश स्थापित करें। फिर मां शैलपुत्री का ध्यान कर व्रत का संकल्प करें। मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्‍तुएं काफी प्रिय हैं, इसलिए चंदन-रोली से टीका कर मां की प्रतिमा पर सफेद वस्‍त्र और सफेद फूल चढ़ाने चाहिए। साथ ही सफेद रंग की मिठाई का भोग भी मां को बेहद ही पसंद आता है। बाद में शैलपुत्री माता की कथा करें और दुर्गा सप्शती का पाठ करें। इसके बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करें। बाद में मां की आरती करें। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की पूजा की जाती है और व्रत का संकल्प लेते हैं। इसके बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। उन्हें लाल सिंदूर, अक्षत, धूप आदि चढ़ाएं। इसके बाद माता के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करें और इसके बाद घी का दीपक और कपूर जलाकर आरती करें। 
मां शैलपुत्री के मंत्र:
-ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां अम्बे की आरती:
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥

मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥

केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥

शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥

चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥

भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥

श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥

मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिका कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया। लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने शिव जी नहीं बुलाया। माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में जाने की इच्छा जताई। सती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने भी उन्हें जाने की अनुमति दे दी। लेकिन जब सती यज्ञ में पहुंची तो वहां पर पिता दक्ष ने सबके सामने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्द कहे। अपने पिता की बाते सुनकर मां सती बेहद निराश हुईं और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जिसके बाद मां सती अलग जन्म में शैलराज हिमालय के घर में जन्मीं और वह शैलपुत्री कहलाईं।
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