हिंदू धर्म में जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु ने धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए कई बार धरती पर अवतार लिया है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में चौथा अवतार नर और नारायण का था। मान्यता के मुताबिक भगवान विष्णु ने सृष्टि के आरंभ में धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में श्रीहरि अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र और वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। श्रीहरि का पूरा वेष तपस्वियों के समान था। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक श्रीहरि विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था।
धर्म शास्त्रों के मुताबिक भगवान नर और नारायण ब्रह्मदेव के प्रपौत्र थे। नर और नारायण ब्रह्माजी के बेटे धर्म और पुत्रबधु रुचि की संतान थे। पृथ्वी पर धर्म के प्रसार का सारा श्रेय इन्हीं को जाता है। कहा जाता है कि नर और नारायण द्वापर युग में धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में जन्मे थे। इसके अलावा स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा उर्वशी को भगवान नर-नारायण ने ही अपनी जांघ से जन्म दिया था। हांलाकि आज भी लोग नर और नारायण के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। ऐसे में हम आज आपको नर और नारायण के बारे में बताने जा रहे हैं।
नर और नारायण का जन्म
ब्रह्मा जी के मानस पुत्र धर्म की पत्नी रूचि के गर्भ से श्रीहरि विष्णु ने नर और नारायण नामक दो तपस्वियों के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु के इस अवतार का कारण धरती पर सुख-शांति और धर्म का प्रचार प्रसार करना था।
तपस्या का पथ
जन्म के साथ ही नर और नारायण का साधना, भक्ति और धर्म में ध्यान बढ़ता गया। बात में वह अपनी माता से आज्ञा लेकर उत्तराखंड में पवित्र स्थली बदरीवन और केदारवन में तपस्या के लिए चले गए। आज वर्तमान समय में उसी बदरीवन को बद्रीकाश्रम और बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। भगवान श्रीहरि विष्णु ने धर्म की महिमा को बढ़ाने के लिए धरती पर तमाम लीलाएं की हैं। इन्हीं में से एक लीला नर और नारायण के रूप में की। इस अवतार में वह तपस्या, ध्यान और साधना के मार्ग पर चलकर ईश्वर के करीब जाने के बात को जीवंत कर गए।
केदारनाथ और बद्रीनाथ
मान्यता के अनुसार, करीब 8 हजार ईसा पूर्व नर और नारायण ने कई हजार साल तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान शिव ने तपस्या से प्रसन्न होकर दोनों को दर्शन दिया और वरदाम मांगने के लिए कहा। नर और नारायण ने भगवान शिव से अपने लिए कुछ नहीं मांगा। बल्कि उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की भोलेनाथ पार्थिव शिवलिंग के रूप में उस स्थान पर हमेशा के लिए वास करें। जिस पर भगवान भोलेनाथ ने उनकी विनती स्वीकार कर ली। वर्तमान में हम केदारनाथ में जिस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं। उसमें आज भी भगवान शिव का वास है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों ने करवाया था। फिर बाद में आदि शंकराचार्य ने दोबारा इस मंदिर का निर्माण करवाया। वहीं राजा भोज ने मंदिर को भव्य आकार दिया। जिसके बाद दोनों भाइयों ने बदरीवन में जाकर भगवान श्रीहरि विष्णु के मंदिर बद्रीनाथ में प्रतिमा की स्थापना की।
आज भी नर-नारायण कर रहे तपस्य़ा
देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम यात्रा में बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। बता दें कि वर्तमान समय में भी इस स्थान पर नर और नारायण नामक दो पर्वत मौजूद हैं। मान्यता के मुताबिक वह आज भी परमात्मा की तपस्या में लीन हैं।
वहीं द्वापर युग में श्रीहरि विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में तो वहीं नर के रूप में अर्जुन ने जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण को पांडवों में सबसे प्रिय अर्जुन थे। द्वापर युग में नर के रूप में अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण नारायण के अवतार थे। इसी कारण कृष्ण के परम सखा, शिष्य, भाई आदि अर्जुन ही थे।