हिन्दू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत को सर्वश्रेठ माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह की शुक्ल व कृष्ण पक्ष की ग्याहरवीं तिथि को एकादशी व्रत रखा जाता है। इस प्रकार से एक वर्ष में कुल 24 एकादशी होती हैं। पंचांग के अनुसार आज यानी 22 मई 2021 को वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है और व्रत किया जाता है। एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और व्रत करने वालों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। कहा जाता है कि जो कोई भी मोहिनी एकादशी का व्रत रखता है उसे मोह से मुक्ति मिल जाती है।
मोहिनी एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 22 मई 2021 को सुबह 09 बजकर 05 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 23 मई 2021 को सुबह 06 बजकर 42 मिनट तक।
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार मोहिनी एकादशी को मोह से मुक्त करने वाली एकादसी माना गया है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को भय, चिंताओं और मोह से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से मनुष्य का तन-मन शुद्ध होता है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। जो व्यक्ति नियमों के साथ मोहिनी एकादशी का व्रत करता है, उसे सभी दुखों से छुटकारा मिलता है और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। मोहिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति जीवन में हर तरह की दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से गौदान के पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
मोहिनी एकादशी व्रत पूजन विधि :
मोहिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इस दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल को गंगा जल से साफ करके पवित्र कर लें। अब एक साफ चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। इसके बाद भगवान को कुमकुम या चंदन का तिलक लगाएं। भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाएं और भगवान को पीले फूल, पंचामृत और तुलसी का भोग लगाएं। पीला रंग भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय होने के कारण पीले रंग के फूल और मिठाई का भोग अवश्य लगाएं। इसके बाद विष्णु चालिसा, विष्णु स्तोत्र और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और भगवान से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। अगले दिन द्वादशी तिथि पर स्नान करने के बाद पूजन करें और व्रत का पारण करें।