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नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए पढ़ें ये मंत्र, जानें पूजन विधि

By Astro panchang | Oct 08, 2021

नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत हो चुकी है। इस बार शारदीय नवरात्रि 07 अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर तक चलेगी। नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता ब्रम्ह्चारिणी माँ जगदम्बा का दूसरा स्वरुप मानी जाती हैं। मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण किए हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बाएं हाथ में कमंडल लिए सुशोभित हैं। कहा जाता है कि माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस वजह से मां को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। मां ब्रह्माचारिणी की पूजा- अर्चना करने से सर्वसिद्धि प्राप्त होती हैं। 

माता के नाम का पहला अक्षर ब्रम्हा है जिसका मतलब है तपस्या और उनके नाम के दूसरे अक्षर चारिणी मतलब है आचरण करना। माता ब्रह्मचारिणी के रूप में ब्रम्हा जी की शक्ति समाई हुई है। जो व्यक्ति भक्ति भाव से दुर्गा पूजा के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करते हैं उन्हें सुख की प्राप्ति होती है और उस व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं सताता। ब्रह्मचारिणी माता हिमालय और मैना की पुत्री हैं। उन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें मनोवांछित वरदान दिया। इसके फलस्वरूप ब्रह्मचारिणी देवी भगवान भोलेनाथ की पत्‍‌नी बनीं। 

ब्रह्मचारिणी माता की पूजा विधि 
मां दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करने के लिए सुबह नहाकर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद ब्रह्मचारिणी माता की पूजा के लिए उनकी मूर्ति या तस्वीर को पूजा के स्थान पर स्थापित करें। माता ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल के फूल बेहद पसंद है इसलिए उनकी पूजा में इन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है। माता को भोग में चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगया जाता है। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी की कहानी पढ़ें और इस मंत्र का 108 बार जप करें-

दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।

ध्यान मंत्र 
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम् ।।
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् ।।
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ।।

स्तोत्र पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ।।
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम् ।।
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