भारत में अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है, हिन्दू धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमे 33 करोड़ देवी देवताओं को माना जाता है।आपको बता दे कि इन्ही देवी देवताओं में से एक सत्यनारायण भगवान को भारत मे पुराने समय से पूजा जाता है और यहाँ सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन का विशेष महत्व माना जाता रहा है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के सत्य सवरूप की यह कथा संकट हरने वाली और इंसान को मोक्ष देने वाली है। हिंदू धर्म के अनुसार जो भी इंसान सच्चे मन से और पूर्ण श्रद्धा के साथ भक्ति के भाव के साथ यह व्रत करता है, तो भगवान विष्णु उसकी सारी इच्छाएं या मनोकामनाएं पूरी करते हैं।तो चलिए आज इस लेख में हम सत्यनारायण व्रत कथा तथा व्रत करने की पूरी विधि आपको बताएंगे।
सत्यनारायण व्रत कथा
प्राचीन काल में शौनकादिऋषि नैमिषारण्य स्थित महर्षि सूत के समक्ष सांसारिक सुख, लौकिक कष्टमुक्ति और पारलौकिक सिद्धि का मार्ग जानने की इच्छा में पहुँचे। उस समय सूत जी ने सत्यनारायण व्रत कथा को इसका सबसे उत्तम मार्ग बताया। कहा जाता हैं कि यही कथा भगवान विष्णु द्वारा नारद जी को सुनाई गई थी। इस कथा के अनुसार शतानन्द, काष्ठ-विक्रेता भील एवं राजा उल्कामुख इस सभी को भगवान सत्यनारायण की इस पावन कथा के श्रवण माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति हुई। बताया गया है कि दीन ब्राह्मण शतानन्द, जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते थे। सत्यनारायण कथा के श्रवण और व्रत के फल से वो इस लोक के सुखों को भोगकर स्वर्ग लोक तक पहुँचे। ऐसे ही काष्ठ विक्रेता भील भी गांव-गांव में अपनी लकड़ियाँ बेचकर कमाए हुए धन से सत्यनारायण भगवान की पूजा अर्चना करता था। इसी को देखकर भगवान सत्यनारायण ने उनपर कृपा बरसाई और उसके घर में धन- धान्य की वृद्धि हुई और उसके सम्पूर्ण दुखों का निवारण हुआ। राजा उल्कामुख ने भी बंधु-बांधवों के साथ सत्यनारायण भगवान का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन किया। उन्हें भी सत्यनारायण भगवान की कृपा से मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई।
सत्यनारायण व्रत पूजा विधि
सत्यनारायण व्रत कथा एवं पूजन करने के लिए सर्वप्रथम प्रातः जल्दी उठे और स्नान कर पूजा वाले स्थान को गोबर के साथ लीप दें। इसके बाद इस स्थान पर पूजा की चौकी को स्थापित कर उसके पास केले के पौधे को रखें क्योंकि केले के वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इसके बाद धुप-दीप, तुलसी, चन्दन, फूल, गंध, पंचामृत सहित पाँच कलशों को पूजा के स्थान पर रखें। इन सबके बाद आपको चौकी पर सत्यनारायण भगवान की मूर्ति को विराजमान करना होगा। इसके पश्चात गणेश जी सहित समस्त देवी-देवताओं का ध्यान करें। भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और आरती उतारें। पूजन समाप्त होने के पश्चात् पुरोहितजी को दान-दक्षिणा दें और भोजन कराएँ। इसके बाद स्वयं परिवार सहित सत्यनारायण कथा का प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें।
इस प्रकार माना जाता है कि इस पावन दुर्लभ व्रत को जो भी करेगा, वह धन-धान्य से परिपूर्ण हो भगवान सत्यनारायण की कृपा से संसार के समस्त सुखों को प्राप्त करेगा।