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जानिए क्यों और किस तरह से मनाई जाती है नाग पंचमी

By Astro panchang | Jul 22, 2020

हिंदू धर्म में श्रवण मास का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस महीने शिव जी की श्रद्धा पूर्वक पूजा की जाती हैं। इसके अलावा यह महीना नाग पंचमी के लिए भी खास माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में नागपंचमी का त्योहार बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को पूर्वांचल क्षेत्रों में एक बड़े पर्व के रूप में मनाते है।हिन्दू लोग नागपंचमी का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाते है। ये त्यौहार श्रावण महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।

मनाने का तरीका:

इस दिन घरों में अलग-अलग तरह के पकवान बनाए जाते हैं जिनमें से सबसे अधिक बनाए जाने वाले हैं सिंवई के साथ गेंहू चने को उबालकर खाया जाता है। कुछ लोग इस दिन खीर बनाकर पूजा करते है।इस दिन सभी लोग मंदिरों में जाकर शिव जी की पूजा आराधना करते है और भगवान भोले भंडारी के भक्त नाग को दूध पिलाने की मान्यता या रिवाज को पूरी तरह निभाते है। महिलाएं भी मंदिरों में कटोरे या किसी पात्र में दूध जरूर रखकर आती है। कहा जाता है की काले साँप अर्थात सर्प आकर उस दूध को पीकर जाते है क्योंकि श्रद्धा और शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि शिव मंदिरों में काले सर्पाें का वास आवश्य होता है। इसलिये लोगों ने दूध पिलाने का रिवाज बना रखा है। इस विशेष त्यौहार पर घरों के लिए मुख्य दरवाजे पर महिलाएं गोबर से सांप यानी नाग नागिन बनाती हैं और खीर से अथवा दूध से बनी चीजों से उन्हें भोग भी लगाती हैं। भोग लगने के बाद में घर में पूजन होता है इसके पश्चात घर के लोग खाना ग्रहण करते हैं।

जानिये नागपंचमी की मान्यताएं:

नागपंचमी का त्योहार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है और नागों को देवता के रूप में पूजा जाता है इसलिये इस पंचमी को नागपंचमी कहते है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग है, पंचमी नागों की तिथि कही जाती है। पंचमी वाले दिन नागों की पूजा करने वाले व्यक्ति को इस दिन भूमि नहीं खोजने चाहिए। इस व्रत में चतुर्थी के दिन एक बार खाना खाने के बाद पंचमी के दिन उपवास करने के पश्चात सीधे शाम को भोजन करते हैं। इस दिन लोग सोना, चांदी, लकड़ी और मिट्टी की कलम व हल्दी चंदन की स्याही से 5 फन वाले अर्थात शेषनाग रूपी पांच नाग बनाते है और खीर, कमल पंचामृत, धूप, नवैध आदि से नागों की साफ मन से विधि पूर्वक पूजा की जाती है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को लड्डू और खीर का भोज करवाते है। बहुत श्रद्धा भाव से हिंदू धर्म में इस त्यौहार को मनाया जाता है और नाग देव को खुश करने का प्रयास किया जाता है।

किसान नागपंचमी के दिन खेतों में हल नहीं चलाते:

विद्वानों की मान्यता है कि एक किसान अपने परिवार के साथ अपना गुजर बसर करता था। उसके 2 लड़के व 1 लड़की तीन बच्चे थे। एक दिन वह खेत में हल चला रहा था, तो उसके हल के मेंज में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गये। बच्चों की मौत पर मां नागिन विलाप करने लगी। गुस्से में नागिन ने मारने वाले से बदला लेने का प्रण लिया। एक रात जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था। तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी व दो बच्चो को डस लिया। दूसरे दिन जब नागिन किसान की पुत्री को डसने आई, तो कन्या ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाँथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। पंचमी का दिन था, नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लड़की बोली मेरे माता पिता व भाई जीवित हो जाए और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करें उसे नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर वहां से चली गयी। उसी समय किसान का परिवार जीवित हो गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना व साग काटना बंद कर दिया गया।

ऐसे करें विधिपूर्वक पूजा:

प्राचीन काल में इस दिन घरों को गोबर में गेरू मिलाकर लीपा जाता था और फिर नाग देवता की विधि विधान से पूजा की जाती थी। पूजा के लिये एक रस्सी में 7 गांठे लगाकर रस्सी का सांप बनाया जाता था। फिर उसे लकडी के पट्टे के ऊपर सांप का रूप मानकर बैठाया जाता था। हल्दी, रोली, चावल व फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है। फिर कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर इसे लकडी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करते है और फिर आरती करते है। इसके बाद कच्चे दूध में शहद, चीनी या थोडा सा गुड मिलाकर किसी सांप की बांबी या बिल मे डाल दिया जाता है। जिसके बाद उस बिल की मिट्टी लेकर चूल्हे दरवाजे के निकट दीवारो पर तथा घर के कोनों में सांप बनाते है। इसके बाद भीगे बाजरे, घी और गुड से इनकी पूजा की जाती है। फिर आरती करके दक्षिणा चढ़ाने का रिवाज है।

पुराने समय में था गुडिया पीटने का प्रचलन:

पुराने समय की कई सारी रीति-रिवाज आज के समय में विलुप्त होती जा रही है जीने में से एक रिवाज है गुड़िया पीटने की रिवाज। यह रिवाज गांव में बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती थी। इस रिवाज में महिलाएं लड़कियां और गांव के लड़के भाग लेते थे। यह इस प्रकार थी - नागपंचमी के दिन घरों में लडकियां व महिलायें कपड़े की गुडिया बनाती है। जिसके बाद घर में बने पकवान व गेंहू चना की कोहरी लेकर समीप के तालाब, नदी या नहरों के तट पर जाती है। जहां विधि विधान से पूजा कर भोग लगाती है। जिसके बाद वह कपड़े की बनाई हुयी गुडियों का नदी के जल मे प्रवाह करती है, जिन्हे युवक नदी मेे घुसकर कोडे या डंडे से पीटते है। लेकिन बीसंवी शताब्दी के इस नये युग में धीरे-धीरे गुडियां पीटने रिवाज विलुप्त होता जा रहा है, जो आज सिर्फ गांवों में सीमित होकर रह गया है।

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