हिन्दू धर्म के अनुसार पितरों की तृप्ति और उनकी आत्मा की शांति के लिए हर साल पितृ पक्ष में श्राद्ध किया जाता है। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध के जरिए दिवंगत पूर्वजों को पिंड दान और तर्पण किया जाता है। उनके हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर आश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या तक चलता है। आमतौर पर पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है। इस साल पितृ पक्ष 2 सितंबर से प्रारम्भ हो रहा है और 17 सितंबर को समाप्त होगा। आज के इस लेख में हम आपको श्राद्ध का महत्व, नियम और श्राद्ध करने के तरीके के बारे में जानकारी देंगे -
श्राद्ध का महत्व
ज्योतिषशास्त्र में पितृपक्ष का बहुत महत्व बताया गया है। कई तरह के दोष बताए गए हैं जिनमें से एक पितृ दोष भी है। शास्त्रों के अनुसार पितृ दोष के कारण व्यक्ति को जीवन में तरह-तरह की कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर पितृ रुष्ट हो जाएं तो व्यक्ति के जीवन में कष्ट और संघर्ष बने रहते हैं। इसलिए पितृदोष से मुक्ति पाने और पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान भाव दिखने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। माना जाता है कि पितृपक्ष में पिंड दान और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका श्राद्ध किया जाना बहुत जरूरी है। मान्यताओं के अनुसार यदि किसी मृत व्यक्ति का श्राद्ध ना किया जाए तो उसकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। इसलिए पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध किया जाता बहुत आवश्यक माना गया है।
किस दिन किया जाता है श्राद्ध
हिन्दू धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाता है। माना जाता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी के दिन करना श्रेष्ठ है। वहीं अगर किसी परिजन की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाना चाहिए। यदि किसी पितरकी मृत्यु तिथि मालूम ना हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इसके अतिरिक्त साधू-सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।
पितृपक्ष में श्राद्ध करने के नियम
पितृ पक्ष के दौरान पिंड दान और तर्पण करने का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और तिल को मिलाकर बने पिंड को पितरों को अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही पितृपक्ष के दौरान हर दिन पानी में काले तिल, जौ, दूध और गंगाजल मिलाकर तर्पण किया जाता है।
हिन्दू धर्म के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए।
श्राद्ध के दौरान पाना खाना, तेल लगाना और संभोग करना भी वर्जित माना गया है।
इस दौरान लहसुन, प्याज, मांस-मछली और मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
पितृ पक्ष में नए वस्त्र, भवन, गहने या कीमती सामान खरीदना भी अशुभ माना जाता है।
श्राद्ध कैसे किया जाता है
मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध करने के लिए किसी पंडित-पुरोहित को बुला सकते हैं। श्राद्ध के दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाएं और उनका स्मरण करें ताकि वे भोजन प्राप्त करके तृप्त हो सकें। श्राद्ध करने के बाद पितरों की आत्मा की शांति की कामना करें। श्राद्ध के दिन गाय, कौए, कुत्ते या चींटी को भोजन कराने से पुण्य मिलता है। पिंड दान और तर्पण करने के बाद पंडित या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें। इस दिन किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद को चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल आदि दान करना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद पितरों के प्रति आभार प्रकट करें और जाने-अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठ कर भोजन करें।