सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो नवरात्रि साल में चार बार आती है - पहली चैत्र नवरात्रि और दूसरी शारदीय नवरात्रि। इसके अलावा दो दो गुप्त नवरात्रियां होती हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से विशेष लाभ होता है। नवरात्रि में जप, तप और पूजा-आराधना करने से माता भक्तों पर प्रसन्न होती हैं और उन्हें सुख-वैभव का आशीर्वाद देती हैं। इस बार नवरात्रि 17 अक्टूबर 2020 से शुरू हो रही है। आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि 2020 शुभ मुहूर्त, घटस्थापना विधि और नवरात्रि कथा -
शारदीय नवरात्रि 2020 शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ - रात 01 बजे से (17 अक्टूबर 2020 )
शारदीय नवरात्रि 2020 घटस्थापना शुभ मुहूर्त - सुबह 6 बजकर 23 मिनट से सुबह 10 बजकर 12 मिनट तक
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक
घटस्थापना की विधि
नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद पूजा-स्थल को साफ करके सबसे पहले गणेश जी का नाम लें। इसके बाद माँ दुर्गा का स्मरण करते हुए उनके नाम से अखंड ज्योति जलाएं। कलश स्थापना के लिए एक मिट्टी का पात्र लें और उसमें मिट्टी बिछाएं। फिर पात्र में रखी मिट्टी में जौ के बीज बोएं। इसके बाद इसमें कुछ बूँदें पानी की डालें। इसके बाद एक कलश लें और उस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। कलश के ऊपरी हिस्से में मौली या कलावा बांधें। इसके बाद कलश में शुद्ध जल भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें फूल, दूब, सुपारी, इत्र, सिक्का और अक्षत् डालें। इसके बाद कलश के मुँह के चारों ओर अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं। अब कलश के ऊपर ढक्कन या कटोरी में चावल डालकर रखें। इसके बाद एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उस पर कलावा बाँधें और उस पर कुमकुम से तिलक लगाएं। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें। इसके बाद आपने जिस मिट्टी के पात्र में जौ बोए हैं, उसके बीचों-बीच इस कलश को रख दें।
नवरात्रि व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था। वह ब्रह्माजी का बड़ा भक्त था और उसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उससे कोई वरदान माँगने को कहा। तब महिषासुर ने ब्रह्माजी से वरदान माँगा कि उसे कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य मार न पाये। वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया और तीनों लोको में आतंक माचने लगा। उसने देवलोक पर अपनाा अधिपत्य कर लिया था। वह सभी देवताओं का अंत करना चाहता था। महिषासुर तीनों लोक पर अपना कब्जा करना चाहता था। कोई भी देवता उसका सामना नहीं कर सकता था इसलिए सभी देवता इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से आग्रह किया कि वे इस समस्या का कोई समाधान उन्हें बताएं। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में देवी दुर्गा को जन्म दिया। माँ दुर्गा का रूप अत्ंयत ही सुंदर और मोहक था। माँ के मुख से करुणा, दया, सौम्यता और स्नेह झलक रहा था। माँ की दस भुजाओं में अलग- अलग अस्त्र सुशोभित थे। ये सभी देवताओं की ओर से उन्हें अस्त्र प्राप्त थे। माता को भगवान शिव ने त्रिशुल, भगवान विष्णु ने चक्र, भगवान वायु ने तीर आदि दिए थे। मां दुर्गा शेर पर सवार थीं। महिषासुर को यह वरदान था कि वह किसी कुंवारी कन्या के हाथों ही मरेगा। जिस समय माँ दुर्गा महिषासुर के सामने गई, वह माता के रूप पर अत्यंत मोहित हो गया और माँ को अपने आधीन के लिए कहा। माता को महिषासुर की इस बात पर अत्यंत क्रोध आया और मां दुर्गा ने उसका वध कर दिया। इसी वजह से हर साल नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है और मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
माँ दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
माँ दुर्गा की आरती
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी. ॐ जय अम्बे…
मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना चन्द्र बदन नीको. ॐ जय अम्बे…
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प दल माला कंठन पर साजे. ॐ जय अम्बे…
केहरि वाहन राजत खड़्ग खप्पर धारी
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी. ॐ जय अम्बे…
कानन कुण्डल शोभित नासग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति. ॐ जय अम्बे…
शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती. ॐ जय अम्बे…
चण्ड – मुंड संहारे सोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे.ॐ जय अम्बे…
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी. ॐ जय अम्बे…
चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरु
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु. ॐ जय अम्बे…
तुम ही जग की माता तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ताॐ जय अम्बे…
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मन वांछित फ़ल पावत सेवत नर-नारी. ॐ जय अम्बे…
कंचन थार विराजत अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति. ॐ जय अम्बे…
श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे. ॐ जय अम्बे…