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जानिए मुहर्रम मुस्लिम धर्म के लिए त्यौहार है या शोक

By Astro panchang | Aug 29, 2020

जैसा कि पूरा विश्व जानता है कि भारत एक सेकुलर देश है यहां पर हर धर्म की एक अपनी मान्यता और रीति रिवाज हैं। जितना यहां पर हिंदू धर्म के त्यौहारों को हर्षोल्लास से मनाया जाता है उसी तरह सही अन्य धर्म के त्यौहार भी बहुत ही ज्यादा हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। भारत में हिंदू आबादी के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी है मुस्लिम जिनके त्यौहार भी बहुत ही ज्यादा महत्व रखते हैं। जैसे हिंदू धर्म में दिवाली होली रक्षाबंधन मनाया जाता है उसी तरह ही मुस्लिम धर्म में भी बहुत ही अनोखे और महत्वपूर्ण त्यौहार होते हैं जिनमें से एक है मुहर्रम। यह त्यौहार इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है इस त्यौहार को लोग बहुत ही ज्यादा हर्ष उल्लास और अच्छी नियत से मनाते हैं। यह त्यौहार खासतौर पर अगस्त के महीने में ही मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 29 अगस्त को मनाया जाएगा। यदि हम इस्लामिक कैलेंडर की बात करें तो इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम हिजरी संवत का प्रथम मास है। इस्लामिक धर्म के अनुसार माने तो मुहर्रम इस्लामिक साल का पहला महीना होता है। इसे आम भाषा में हिजरी भी कहा जाता है। हिजरी सन की शुरूआत खासतौर पर इसी महीने से होती है। इस्लाम धर्म प्रमुख तौर पर 4 महीने बहुत ही ज्यादा पवित्र माने जाते हैं उन चार महीनों में से एक महीना मुहर्रम का भी है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इसे अल्लाह का महीना कहा है। मोहर्रम के बारे में जाने के लिए सबसे पहले आपको मोहर्रम के इतिहास को जानना होगा जब इस्लाम में खिलाफत जाने यानी खलीफाओं का शासन था।

क्यों मनाते है मुहर्रम?

सबसे पहले यह जानिए के मोहर्रम क्यों मनाते है। हर घर में त्यौहार को मनाने का एक अपना प्रमुख कारण और उसका एक अपना इतिहास होता है। इस त्यौहार का भी अपना एक बहुत महत्वपूर्ण इतिहास है जो कि हर व्यक्ति को जाना चाहिए। यदि आप इस्लामिक धर्म को या मुस्लिम धर्म के त्योहारों को समझना चाहते हैं जानना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको इनके इतिहास के बारे में जानना होगा। आखिर इस त्यौहार की शुरुआत कैसे हुई किसने इस त्यौहार की नींव रखी ऐसे कई तमाम सवाल है जो कि हर व्यक्ति के जेहन में आते है। तो आज हम आपको इन सभी सवालों का विस्तार से जवाब देंगे। इस त्यौहार को मनाने की मुख्य वजह दरअसल यह है कि इराक में यजीद नामक जालिम बादशाह था जोकि इंसान के रूप में हैवान था या हम दूसरे शब्दों में यह कहे कि वह इंसानियत का दुश्मन था। ऐसे में इस व्यक्ति से निजात पाने के लिए हजरत इमाम हुसैन ने चाली बादशाह यजीद के खिलाफ हिम्मत करके जंग का ऐलान कर दिया था।मोहम्मद-ए-मस्तफा के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला नामक स्‍थान में परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था।यजीद के खिलाफ लड़ते लड़ते और इंसानियत के लिए हुसैन और उनका परिवार शहीद हो गया।जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार के लोग शहीद हुए वह महीना मुहर्रम का ही था।जिस दिन हुसैन का परिवार शहीद हुआ उस दिन मुहर्रम के महीने की 10 तारीख थी जिसके बाद इस्‍लाम धर्म के लोगों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया। बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने में बदल गया।गया।

इस दिन पहनते हैं काले कपड़े: 

हुसैन और उनके परिवार के शहीद होने के बाद यह महीना खुशी की तरह गम में बदल गया। इस दिन शिया समुदाय के लोग मोहर्रम के 10 दिन काले कपड़े पहनते हैं। वही बात करें मुस्लिम समुदाय में दूसरे मुस्लिम समाज की तो वह सुननी जोकि मुहर्रम के 10 से रोजा रखते हैं। इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में श‍हीद हुए थे उन्‍हें याद किया जाता है और इनकी आत्‍मा की शांति की दुआ की जाती है। ताकि भविष्य में इस तरह का अपराध या जुल्म किसी पर भी ना हो।

क्या है ताजिया ?

यह इसलिए भी मनाया जाता है क्योंकि सिया और मुस्लिम धर्म के लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देते हैं। मुस्लिम धर्म में अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने का एक यह तरीका भी है। मुहर्रम के 10 दिनों तक बांस, मुस्लिम धर्म के लोग लकड़ी का इस्तेमाल करके तरह तरह से इसे सजाते हैं और 11वें दिन इन्हें बाहर निकाला जाता है। मुहर्रम वाले दिन मुस्लिम धर्म के लोग सड़कों पर अपने आसपास के इलाकों में काफी बड़ी संख्या में भ्रमण करते हैं।इस त्यौहार के दिन सभी इस्लामिक लोग एक साथ इकट्ठे हो जाते हैं। इसके बाद इन्हें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर दफनाया जाता है। एक तरीके से 60 हिजरी में शहीद हुए लोगों को एक तरह से यह श्रद्धांजलि दी जाती है। बहुत से लोग मुहर्रम को एक त्यौहार की तरह समझते हैं हालांकि यह मुस्लिम धर्म के लिए एक त्यौहार नहीं बल्कि मातम के रूप में मनाया जाता है। इस दिन इस्लाम से ताल्लुक रखने वाले सभी लोग हुसैन और उनके परिवार को श्रद्धांजलि देते हैं। जिस स्‍थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है। मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है। मुहर्रम के दौरान जुलूस भी निकाले जाते हैं।

क्या करते हैं जुलूस में?

जब आम व्यक्ति मोहर्रम के त्यौहार को मनाते हुए देखता है तो उसके मन में सबसे पहले यह विचार आता है कि मुस्लिम धर्म के लोग मातम में इस तरह का जुलूस क्यों निकालते है। दरअसल इस दिन लोग करबला के खूनी युद्ध पर भाषण सुनते हैं साथ ही वह लोग संगीत और शादी विवाह जैसे खुशहाल अफसरों पर भी नहीं जा पाते। मुस्लिम धर्म के लोग, इस्लाम से ताल्लुक रखने वाले लोग मोहर्रम के दसवें दिन रणधीर बैनर और बांस कागज शहीदों के चित्रण के साथ सड़कों पर उतरते हैं। सड़क पर उतर कर सभी लोग जुलूस निकालते हैं, जुलूस निकालने के दौरान वह लोग नंगे पैर चलते हैं और शोक विलाप करते हैं। विलाप करने का और शोक मनाने का आलम कुछ ऐसा होता है कि कुछ लोग अपने आप को ही बहुत ही ज्यादा घायल कर लेते हैं, खुद का ही खून निकालने लगते हैं, कोड़े मारते हैं और वह खुद को ही सजा देते हैं। यह सभी तरीके उनके विलाप और शोक मनाने का जरिया हैं। बल्कि कुछ लोग इसी जुलूस में नाच कर कर्बला के युद्ध का अभिनय करते हुए नजर आते हैं।

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