हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत की विशेष महत्त्व है। हर माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दिन सूर्यास्त के बाद भगवान शिव की उपासना करने से मनवांछित वर प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है और जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस माह का दूसरा प्रदोष व्रत 26 मार्च (शुक्रवार) को है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग प्रदोष का व्रत करते हैं उन्हें भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत करने के कुछ नियम और पूजन विधि हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष व्रत यदि नियम और पूजा विधि के अनुसार ना किया जाए तो व्रत का पुण्य नहीं मिलता। आज के इस लेख में हम आपको प्रदोष व्रत के नियम और पूजन विधि की जानकारी देंगे -
स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत करने की दो विधियाँ हैं। एक विधि के अनुसार इस व्रत में 24 घंटे तक कुछ खाना नहीं होता है और दूसरी विधि के अनुसार शाम को सूर्यास्त के बाद पूजा करके फलाहार कर सकते हैं। लेकिन इन दोनों विधियों में से एक ही नियम हर व्रत में रखना होगा।
शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ : 26 मार्च (शुक्रवार) को प्रात: 08 बजकर 21 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समाप्त : 27 मार्च (शनिवार) को प्रात: 06 बजकर 11 मिनट तक
प्रदोष व्रत का समय : 26 मार्च को शाम 06 बजकर 36 मिनट से रात्रि 08 बजकर 56 मिनट तक
प्रदोष व्रत पूजन विधि
- प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए।
- प्रदोष व्रत करने वाले को सुबह उठते ही भगवान भोलेनाथ का स्मरण करना चाहिए।
- इस व्रत में शाम को सूर्यास्त के बाद भगवान शिव की पूजा की जाती है।
- शाम को स्नान करके, साफ कपड़े पहनकर पूजन करें।
- पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करने के बाद गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें।
- मंडप में अलग-अलग रंगों से रंगोली बनाएं।
- प्रदोष व्रत में पूजन के लिए कुश के आसान का प्रयोग किया जाता है।
- इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा सुनें और भगवान की आरती करें।
- भगवान शिव से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और प्रभु से आशीर्वाद मांगे कि वे आप और आपके परिवार पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।
- भगवान को भोग लगाएं और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।