बिहार के जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड के लछुआड़ स्थित मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर काफी पुराना मंदिर है। इस मंदिर में पिछले 200 सालों से भी अधिक समय से तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना होती चली आ रही है। हर साल दिवाली के मौके पर अर्धरात्रि में मां काली की प्रतिमा स्थापित कर तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। प्राचीन गिद्धौर राजवंश के तत्कालीन राजा महाराजा चंद्रचूड़ सिंह ने इस जगह पर पूजा अर्चना प्रारंभ की थी। उस दौरान यहां पर मां काली को भैंसे की बलि दी जाती थी। फिर साल 1996 में गिद्धौर रियासत के अंतिम शासक महाराजा प्रताप सिंह ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर की पूजा-अर्चना का अधिकार गांव के स्थानीय लोगों को दे दिया।
मंदिर में दी जाती है बलि
मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भैंसे की बलि बंद करने के बाद बकरे की बलि दी जाती है। तमाम तरह के मेवा मिष्ठान के साथ 56 तरह के भोग लगाया जाता है। इस 56 भोग में बकरे का पका हुआ मांस भी शामिल होता है। बता दें कि प्रतिमा की स्थापना से लेकर अगले तीन दिनों तक मां काली को बकरे की बलि देकर रोजाना नियमित रूप से बकरे का मांस पकाकर भोग लगाया जाता है। बताया जाता है कि यहां पर मां काली की प्रतिमा का स्वरूप अन्य जगहों की अपेक्षा काफी उग्र है।
विगत चार पीढ़ियों से इस काली मंदिर में प्रतिमा की स्थापना के लिए देवघर के पुरोहित द्वारा पूजा अर्चना की जा रही है। मंदिर के पास प्रतिमा स्थापना से लेकर तीन दिनों तक भव्य मेले का आयोजन होता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां पर मां काली की पूजा के मौके पर दक्षिण बिहार का सबसे भव्य मेला लगता है।
बता दें कि इस मंदिर के पास में प्राचीन गिद्धौर रियासत का किला मौजूद है, जो इसकी भव्यता को दर्शाता है। यहां के स्थानीय लोगों की मानें, तो इस पूरे क्षेत्र की मंदिर से आस्था सदियों से जुड़ी है। मां की कृपा से श्रद्धालुओं को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और मनोकामना पूरी होने के बाद भक्तों द्वारा माता रानी को प्रसाद भेंट में चढ़ाया जाता है। इसके अलावा यहां पर बकरे की बलि भी दी जाती है।