प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हस्त नक्षत्र में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अखंड सौभाग्य की कामना और अपने पति की दीर्घ आयु के लिए निराजल व्रत करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह व्रत माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। अविवाहित कन्याएं भी अच्छे पति की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। यह त्यौहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और राजस्थान में मनाया जाता है। इस साल हरतालिका तीज 21 अगस्त को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं इस साल हरतालिका व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और हरतालिका तीज की कथा के बारे में -
हरतालिका तीज पूजन मुहूर्त
21 अगस्त को प्रातःकाल मुहूर्त - सुबह 5 बजकर 53 मिनट से सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक
शाम को हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त - शाम 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 06 मिनट तक
तृतीया तिथि प्रारंभ -21 अगस्त की रात 02 बजकर 13 मिनट से
तृतीया तिथि समाप्त - 22 अगस्त रात 11 बजकर 2 मिनट तक
हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि
हरतालिका तीज का व्रत करने वाली महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद श्रृंगार करती हैं। इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। नियमों के अनुसार हरतालिका तीज की पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में की जाती है। पूजा के लिए गौरी-शंकर और गणेश की मिट्टी की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद पूजा स्थल को फूलों से सजाकर वहां गौरी-शंकर और गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है । इस व्रत वाले दिन माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं अर्पित करती हैं। पूजा में तीज की कथा सुनते हैं और रात में भगवन का भजन-कीर्तन और जागरण करते हैं। हरतालिका तीज का व्रत निराजल और निराहार किया जाता है। अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोला जाता है।
हरतालिका तीज कथा
हरतालिका तीज की कथा भगवन शिव और माता पार्वती से जुड़ी हुई है। हरतालिका दो शब्दों को जोड़ कर बना है -हरत मतलब अपहरण और और आलिका मतलब सहेली। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती की सहेलियाँ उन्हें एक जंगल में ले कर छिपा देती हैं ताकि उनके पिता भगवान विष्णु से उनका विवाह ना करवा पाएं। माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप मे पाने के लिए कठोर तपस्या की थी जिसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। तभी से विवाहित महिलाएं हरतालिका तीज का व्रत अखंड सौभाग और पति की दीर्घ आयु के लिए करती हैं। कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं।