हिमालय की हसीन वादियों में हेमकुंड साहिब का गुरुद्वारा स्थित है। बता दें कि यह सिखों का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यहां की सुंदरता किसी का भी मन मोह सकती है। बताया जाता है कि इस स्थान पर सिखों के दसवें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पिछले जीवन में ध्यान साधना कर वर्तमान जीवन लिया था।
जानिए क्यों पड़ा हेमकुंड नाम
बता दें कि हेमकुंड संस्कृत का एक नाम है। हेम का अर्थ बर्फ और कुंड का अर्थ कटोरा होता है। गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ के मुताबिक यह वह स्थान है जहां पर राजा पांडु अभ्यास योग करते छे। इसके अलावा बताया जाता है कि जब पांडु हेमकुंड पहाड़ पर गहरे ध्यान में चले गए। तब भगवान ने उनको सिख गुरु गोबिंद सिंह के रूप में यहां पर जन्म लेने का आदेश दिया था।
ऐसे हुई हेमकुंड की खोज
हेमकुंड की खोज के पीछे भी एक बेहद रोचक कहानी है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह जगह करीब 2 से अधिक सदियों तक गुमनामी में रही है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा बिचित्र नाटक में इस जगह का जिक्र किया था। तब से यह जगह अपने अस्तित्व में आया। हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले पहले सिख पंडित तारा सिंह नरोत्तम थे। उन्होंने श्री गुड़ तीरथ संग्रह में इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है। बाद में हेमकुंड के विकास के बारे में प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने अहम जानकारियां हासिल की।
लक्ष्मण जी से जुड़ा है इतिहास
इस स्थान को काफी ज्यादा पवित्र माना जाता है। पहाड़ों से घिरे इस स्थान पर एक बड़ा तालाब भी है। इस तालाब को लोकपाल कहते हैं। लोकपाल यानी की लोगों का निर्वाहक। सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है। इस पवित्र स्थल का जिक्र रामायण में भी मिलता है। इस स्थान को लेकर कई मान्यताएं मौजूद हैं। कहा जाता है कि यह वहीं स्थान है, जहां पर लक्ष्मण जी ध्यान के लिए बैठते थे। इस वजह से उनका यहां पर एक मंदिर भी बना हुआ है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, लक्ष्मण जी शेषनाग का अवतार थे। साथ ही शेषनाग लोकपाल झील में तपस्या करते थे और भगवान श्रीहरि विष्णु उनकी पीठ पर बैठकर विश्राम करते थे। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार, मेघनाथ के साथ युद्ध में घायल होने पर लक्ष्मण को लोकपास झील के किनारे लेकर आया गया था। इसी स्थान पर लक्ष्मण जी को हनुमान ने संजीवनी बूटी दी थी। जिसके बाद वह ठीक हो गए थे। लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने के बाद देवताओं ने पुष्पवर्षा की थी। तभी से यहां पर फूलों की घाटी बनी। वर्तमान में इस स्थान को 'वैली ऑफ फ्लॉवर्स' के नाम से जाना जाता है।