इलाज केवल दवाई से होनी चाहिए ये बात प्राचीन मान्यता के विपरीत ही है। औषधि तो हमारी जीवन शक्ति को कम ही करती है। योग, प्राणायाम, स्वमूत्र चिकित्सा, मक्खन, धागेवाली मिश्री, तुकमरी मिश्री, धातु-सोना, चांदी, तांबा तथा लोहे के पानी से सूर्य-रश्मि चिकित्सा, लौंग तथा मिश्री से चिकित्सा ये अनेक सरलतम साधन हैं, जिनसे बिना दवाई के हमारे शरीर का सही उपचार हो सकता है।
आज भी गौमूत्र चिकित्सा, अंकुरित चने-मूंग तथा मैथी दाने भोजन में लेने से, अधिक पानी पीना आदि ये सभी ऐसे प्रयोग हैं, जिनसे बहुत जल्दी ही लाभ होता है। एक-एक गमले में एक-एक मुठ्ठी गेहूं छोड़कर एक-एक दिन छोड़कर सात गमलों में जुआरे बोए जाएं। इन जुआरों के रस से टी.बी., कैंसर जैसी बीमारियों को भी दबाया जा सकता है।
ऐसे ही हमारे ऋषि-मुनियों ने रत्नों द्वारा भी अनेक बीमारियों के उपचार ज्योतिषी शास्त्र में बताए हैं। ये हमारे देश की ज्योतिष विद्या का एक अद्भुत प्रकार का चमत्कार ही है।
रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न
1. सूर्य-माणिक,
2. चंद्र-मोती,
3. मंगल-मूंगा,
4. बुध-पन्ना,
5. गुरु-पुखराज,
6. शुक्र-हीरा,
7. शनि-नीलम,
8. राहू-लहसुनिया,
9. केतु-लाजावत।
मेष, सिंह व धनु राशि वाले किसी भी प्रकार का नग पहनें तो चांदी में पहनना जरूरी है, क्योंकि चांदी की तासीर ठंडी है। इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन, कुंभ इन राशि वालों को सोने में नग धारण करना शुभ होता है तथा मंगल का नग तांबे में धारण करने के लिए बताया जाता है क्योंकि इन धातुओं की तासीर गरम है तथा राशियों की तासीर ठंडी है। इसके कारण इन तासीर वालों को जो शीत विकार होते हैं ऐसा करने से उनको जल्दी ही लाभ होगा। धातु का लाभ 50 प्रतिशत होगा, रत्नों का लाभ शत-प्रतिशत होगा।
अगर शुद्ध रत्न खरीदने का सामर्थ्य नहीं हो तो उनकी जगह धातु को पानी अथवा तेल में उबाल कर एक लीटर पानी को उबालकर 250 ग्राम करके उस पानी को पीना भी लाभ देगा तथा उसके इसी प्रकार के तैयार किए हुए तेल से मालिश भी विशेष लाभप्रद सिद्ध होगी।