वैशाख के महीने में कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। अन्य एकादशियों की तरह वरुथिनी एकादशी भी भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती हैं। मान्यता के अनुसार, वरुथिनी एकादशी व्यक्ति को दुख और दरिद्रता से हमेशा के लिए मुक्ति दिलाती है। साथ ही यह व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि करती हैं। इस वर्ष यह वरुथिनी एकादशी 16 अप्रैल को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं वरुथिनी एकादशी का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि।
महत्व
मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। इस व्रत को करने से व्यक्ति कई वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त करता है। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जाने-अंजाने में हुए पापों से मुक्ति मिल जाती है और उसके सभी दुख दूर होते हैं। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को मृत्यु के बाद बैकुंठ प्राप्त होता है।
शुभ मुहूर्त
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 15 अप्रैल 2023 को सुबह 08:05 मिनट पर हो रही है। यह 16 अप्रैल 2023 को सुबह 06:14 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार, वरुथिनी एकादशी का व्रत 16 अप्रैल को रखा जाएगा। वहीं इस व्रत का पारण 17 अप्रैल 2023 को सुबह 05:54 मिनट से 10:45 मिनट के बीच तक किया जा सकता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत विधि
वरुथिनी एकादशी के व्रत का नियम एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद से लागू होता है। ऐसे में वरुथिनी एकादशी के एक दिन पहले सूर्यास्त से पहले भोजन आदि कर लें। इस दौरान प्याज-लहसुन या तामसिक भोजन करने से बचना चाहिए। इसके बाद अगले दिन एकादशी को सुबह जल्दी स्नान आदि कर भगवान के सामने व्रत का संकल्प करें। फिर भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजा पाठ करें और कथा पढ़ें। इसके बाद परिवार के सदस्यों के साथ आरती करें और पूजा में हुई त्रुटि के लिए क्षमा मांगे।
एकादशी का व्रत रखने के दौरान श्रीहरि विष्णु के नाम का जाप करें। इस दिन बुराई-भलाई, चुगली आदि से दूर रहना चाहिए। अपना अधिक से अधिक समय भगवान का स्मरण करने में गुजारें। अगर आप चाहें तो व्रत के दौरान फलाहार कर सकते हैं। व्रत के अगले दिन जरूरतमंद को भोजन आदि करवा कर उसे अपने सामर्थ्य अनुसार, दान दक्षिणा दें। इसके बाद व्रत का पारण कर लें।