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Holashtak 2024: होलाष्टक के 8 दिनों में सभी ग्रह हो जाते हैं उग्र, भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये शुभ कार्य

By Astro panchang | Mar 11, 2024

होलिका दहन से 8 दिन पहले के समय को होलाष्टक कहा जाता है। होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। होलाष्टक की शुरूआत फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से हो जाती है। वहीं होलिका दहन वाले दिन होलाष्टक का आखिरी दिन होता है। बता दें कि हिंदू समुदाय में होलाष्टक के 8 दिन अशुभ माने जाते हैं।
 
वहीं रंगवाली होली के दिन से शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है। बताया जाता है कि होलाष्टक के ये 8 दिन तपस्या वाले होते हैं। इस अवधि में सदाचार और आध्यात्मिक कार्यों में मन लगाना चाहिए। तो आइए जानते हैं होलाष्टक का महत्व और इन दिनों क्या करना चाहिए औऱ क्या नहीं।

कब से शुरू हो रहा होलाष्टक
हिंदू पंचांग के मुताबिक 16 मार्च रात 09:39 मिनट से फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत हो रही है। वहीं रविवार 17 मार्च 09:53 मिनट पर यह तिथि संपन्न हो रही है। ऐसे में उदयातिथि के मुताबिक 17 मार्च 2024 को अष्टमी तिथि की शुरूआत होगी और इसी दिन से होलाष्टक की शुरूआत होगी। इस दिन से आठवें दिन यानी की 24 मार्च 2024 को होलिका दहन होगा। 24 मार्च होलाष्टक का आखिरी दिन होगा। वहीं 25 मार्च 2024 को होली से शुभ कार्यों पर लगी रोक हट जाएगी।

होलाष्टक का महत्व
होली और अष्टक से मिलकर होलाष्टक बना है। मान्यता के मुताबिक होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र हो जाते हैं। जिसके कारण इन दिनों किए गए शुभ कार्यों के शुभ परिणाम नहीं मिल पाते हैं। इसी वजह से होलाष्टक के दौरान बच्चे का नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह और अन्य 16 हिंदू संस्कार या अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं। तो वहीं इस अवधि में कोई नया व्यवसाय या उद्यम भी नहीं शुरू किया जाता है।

होलाष्टक में करते हैं ये काम
पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, बिहार, हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में होली का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होलाष्टक की क्या परंपरा है और इन दिनों क्या किया जाता है। दरअसल, होलाष्टक की परंपरा के मुताबिक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन होलिका दहन के लिए स्थान सुनिश्चित किया जाता है। फिर हर रोज होलिका दहन वाले स्थान पर छोटी-छोटी लकड़ियां इकट्ठा की जाती है। वहीं लोग पेड़ की शाखा को रंग-बिरंगे कपड़ों से सजाना शुरू कर देते हैं। हर व्यक्ति पेड़ की शाखा पर कपड़े का एक टुकड़ा बांधता है। वहीं आखिरी दिन उसे जमीन में गाड़ दिया जाता है। तो वहीं कुछ लोग होलिका दहन के दौरान कपड़ों के इन टुकड़ों को भी जला देते हैं।

होलाष्टक की तपस्या
बता दें कि होलाष्टक के दिन तपस्या वाले होते हैं। इन दिनों दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी स्थिति अनुसार इन दिनों अनाज, कपड़े, धन और अन्य जरूरत की वस्तुओं का दान करना चाहिए। होलाष्टक के दिनों में दान का विशेष फल मिलता है। साथ ही आध्यात्मिक कार्यों में मन लगाना चाहिए और संयम, ब्रह्मचर्य और सदाचार का पालन करना चाहिए।
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