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Chakshushopanishad Mantra: इस मंत्र के रोजाना जप से तेज होगी आंखों की रोशनी, मिलेंगे ये सारे लाभ

By Astro panchang | Dec 27, 2023

हिंदू धर्म में सूर्य देव का बेहद महत्व माना जाता है और इन्हें भगवान का दर्जा दिया गया है। सूर्य की कृपा से ही धरती पर जीवन संभव है। वहीं कुंडली में सूर्य की स्थिति व्यक्ति के जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालता है। बता दें कि सूर्य ग्रहों के राजा हैं और इन्हें नेत्र व बुद्धि का कारक ग्रह माना जाता है। कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होने पर व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान और यश बढ़ता है, तो वहीं सूर्य की स्थिति खराब होने पर कार्यक्षेत्र में समस्या और आंख संबंधी समस्याएं होती हैं।

आपको बता दें सूर्य देव की रोजाना उपासना करने से नेत्र रोग दूर होने के साथ ही बुद्धि का विकास होता है। ऐसे में आंखों की रोशनी को बढ़ाने और नेत्र संबंधी रोगों से दूर रहने के लिए आपको रोज सुबह शाम चाक्षुषोपनिषद मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र में बहुत शक्ति होती है। इस मंत्र के जप से दृष्टि बढ़ती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको चाक्षुषोपनिषद मंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं। इस मंत्र के रोजाना जप करने से न सिर्फ आंखों की रोशनी बल्कि बुद्धि भी तेज होती है।
 
चाक्षुषोपनिषद मंत्र
ॐ तस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बन्ध्यु ऋषि:, गायत्री छन्द, 
सूर्यो देवता, चक्षूरोगनिवृत्तये जपे विनियोग:।
ॐ चक्षुष चक्षुष चक्षुष तेजः स्थिरो भव, माम (या रोगी का नाम) पाहि पाहि,
त्वरितं चक्शुरोगान शमय शमय
मम जातरूपं तेजो दर्शये दर्शये,
यथा अहम अन्धो नस्याम तथा कल्पय कल्पय
कल्याणं कुरु कुरु,
यानी मम पूर्व जन्मोपार्जितानी
चक्षुष प्रतिरोधक दुष्क्रुतानी
सर्वानी निर्मूलय निर्मूलय
ॐ नमः चक्षुः तेजोदात्रे दिव्यायभास्कराय
ॐ नमः करूनाकराय अमृताय
ॐ नमः सूर्याय ॐ नमो भगवते श्री सूर्याय अक्षितेजसे नमः
खेचराय नमः , महते नमः रजसे नमः, तमसे नमः,
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय,
मृत्योरमा अमृतंगमय,
उष्णो भगवान् शुचिरूपः हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः
यइमाम् चाक्षुशमतिम विद्याम
ब्रह्मणों नित्यम अधीयते
न तस्य अक्षि रोगो भवती
न तस्य कूले अंधोर भवती
अष्टो ब्राह्मणाम ग्राहित्वा
विद्या सिद्धिर भवती
विश्वरूपं घ्रणितम जातवेदसम हिरणमयम पुरुषंज्योतीरूपं तपन्तं
सहस्त्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम उदयत्येष सूर्यः
ॐ नमो भगवते आदित्याय अक्षितेजसे-अहो वाहिनी अहो वाहिनी स्वाहाः
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