हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। 01 वर्ष में कुल चार नवरात्रि के पर्व मनाए जाते हैं जिसमें से शारदीय और चैत्र नवरात्रि बहुत ही खास होते हैं। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 02 अप्रैल, शनिवार से होने जा रहे हैं। शनिवार का दिन होने की वजह से देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पूरे नौ दिनों तक पृथ्वी पर वास करेंगे और अपने भक्तों पर कृपा बरसाएंगी। चैत्र नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है और इस दिन कलश स्थापना के साथ देवी के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री का पूजा-आराधना की जाती है। नवरात्रि नवमी तिथि तक चलेगी जिसमें कन्या पूजन के बाद दशमी तिथि को पारण किया जाएगा। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है कि, नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के विधिवत पूजन से श्रद्धालुओं को मनवांछित फल मिलता है और मां की कृपा भी बानी रहती है। आइए जानें ‘चैत्र नवरात्रि’ का शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना की विधि -
शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना ‘चैत्र नवरात्रि’ की प्रतिपदा तिथि यानी पहले दिन की जाएगी। कलश स्थापना का शुभ समय 2 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक है। कुल अवधि 02 घंटे 18 मिनट की है।
घटस्थापना के लिए सामग्री
- मिट्टी का चौड़े मुंह वाला कलश
- मिट्टी का ढक्कन (पराई) कलश ढकने के लिए
- पराई में भरने के लिए अनाज
- सही जगह की मिट्टी
- सात तरह के अनाज
- साफ जल
- थोड़ा गंगाजल
- कलावा या मौली
- सुपारी
- आम या अशोक के पत्ते कलश को ढकने के लिए
- अक्षत
- जटा वाला नारियल
- लाल कपड़ा नारियल लपेटने के लिए
- फूल
- दूर्वा, सिंदूर,
- मिठाई
- पान
- लौंग
- इलायची
- बताशा
- गौरी पूजा के लिए मिट्टी के चार टुकड़े
घटस्थापना विधि
कलश स्थापना के लिए सुबह उठकर स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें। पूजा स्थल या पूजा मंदिर की साफ-सफाई कर लाल कपड़े बिछाएं। फिर इसके उपर अक्षत रखें। इसके बाद कलश स्थापित करने वाली जगह को गोबर से लीप लें या फिर साफ पानी से धो लें। इसके बाद साफ मिट्टी में सात तरह के अनाज या केवल जौ मिला लें। इसके बाद मिट्टी के कलश को लेकर उसके मुंह के चारों ओर कलावा बांध दें और स्वास्तिक का चिन्ह बना दें। इसके बाद इसमें जल भर कर मिट्टी के ऊपर रख दें। अब कलश के ऊपर मिट्टी का ढक्कन रख दें और उसमें गेहूं आदि भर दें। इसके बाद लाल कपड़े में नारियल को लपेटकर कलावा से बांध कर और कलश के ऊपर रख दें। अब गणेश जी और मां दुर्गा का आवाहन करें। इसके बाद फल, माला, अक्षत, रोली क्रमश चढ़ाएं। फिर पान में सुपारी, लौंग, इलायची, बाताशा रखकर चढ़ा दें। इसके बाद भोग लगाएं और जल अर्पित कर दें। फिर धूप-दीपक जलाकर कलश की आरती कर लें। इसके साथ ही एक घी का दीपक लगातार 9 दिनों तक जलने दें। कलश में साबुत, सुपारी, सिक्सा, अक्षत और आम का पल्लव डालें। इस नारियल को कलश के ऊपर रखें। इसके बाद देवी का आवाहन करें। इसके बाद मां दुर्गा की पूजा करें।
‘देवी पुराण’ (Devi Purana) के अनुसार, साल में चार बार नवरात्रि का त्योहार आता है। चैत्र माह में पहली नवरात्रि होती है जिसे चैत्र या बड़ी नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है जिसे गुप्त नवरात्रि कहते है। अश्विन मास में तीसरी नवरात्रि आती है जिसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। माघ में चौथी नवरात्रि होती है इसे भी ‘गुप्त नवरात्रि’ ही कहा जाता है।