हिन्दू धर्म में अचला सप्तमी का विशेष महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी के रूप में मनाते हैं। इस सप्तमी को पूरे साल की सप्तमी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अचला सप्तमी को रथ सप्तमी, भानु सप्तमी और अरोग्य सप्तमी भी कहा जाता है। अगर सप्तमी तिथि रविवार को पड़ती है तो इसे अचला भानू सप्तमी कहते हैं। इस साल अचला सप्तमी 19 फरवरी 2021 (शुक्रवार) को है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन सूर्य का जन्म हुआ था और इसलिए इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन सात जन्म के पाप को दूर करने के लिए रथारूढ़ सूर्यनारायण की पूजा की जाती है।
अचला सप्तमी महत्व
इस दिन भक्त सुबह सूर्य की प्रार्थना करते हैं और गंगा या किसी पवित्र नदी या किसी तालाब में डुबकी लगाते हैं। इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा करने और व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन अरुणोदय के दौरान सूर्योदय से पहले स्नान करने से सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है और आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन व्रत के बाद जो व्यक्ति सूर्य की पूजा करके केवल मीठा भोजन या फलाहार करता है, उसे पूरे वर्ष सूर्य का व्रत व पूजा करने का पुण्य मिलता है। भविष्य पुराण के अनुसार, यह व्रत सौभाग्य, सुंदरता व उत्तम संतान प्रदान करता है।
अचला सप्तमी शुभ मुहूर्त-
- सप्तमी तिथि आरंभ- 18 फरवरी 2021 (गुरूवार) को सुबह 8 बजकर 17 मिनट से
- सप्तमी तिथि समाप्त- 19 फरवरी 2021(शुक्रवार) सुबह 10 बजकर 58 मिनट तक
- सप्तमी के दिन अरुणोदय- सुबह 6 बजकर 32 मिनट
- सप्तमी के दिन अवलोकनीय (दिखने योग्य) सूर्योदय- सुबह 6 बजकर 56 मिनट
अचला सप्तमी पूजा विधि-
- अचला सप्तमी की सुबह स्नान के पहले आक के सात पत्ते सिर पर रखें और सूर्य का ध्यान करें।
- स्नान करने से पहले गन्ने से जल को हिला कर- ‘नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:। वरुणाय नमस्तेऽस्तु'- पढ़ें।
- एक दीपक जलाएं और सूर्यदेव की प्रार्थना करें।
- स्नान के बाद सूर्य की अष्टदली प्रतिमा बना लें। उसमें शिव और पार्वती को स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें।
- फिर तांबे के पात्र में चावल भर कर दान करें।
- जो लोग नदी में स्नान नहीं कर सकते, वे गंगा का स्मरण कर, गंगा जल डाल कर स्नान कर सकते हैं।
अचला सप्तमी को लेकर प्रचलित कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मुनि ने कहा, "माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करो।" इंदुमती ने मुनि के बताए अनुसार व्रत किया। इससे मिले पुण्य से जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था। शाम्ब ने अपने इसी अभिमानवश होकर दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया। दुर्वासा ऋषि को शाम्ब की धृष्ठता के कारण क्रोध आ गया, जिसके पश्चात उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र शाम्ब से भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने भगवान कृष्ण की आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी। जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा से उन्हें अपने कुष्ठ रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई।