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एक ऐसी अप्सरा जिसके साथ कई ऋषियों ने बनाए संबंध, बनी 100 से अधिक संतानों की मां

By Astro panchang | Sep 19, 2020

नारी सुंदरता का बखान हर युग में किया गया है। स्वर्ग के अप्सराओं के स्वर्णिम काया के सुंदरता का वर्णन पौराणिक कथाओं में बेहद ही आकर्षक ढंग से किया गया है। अप्सराओं की सुंदरता के चुंबकीय बल में कई ऋषि मुनि और देवता भी फस जाते थे।पहाड़ों पर लंबे वर्षों तक तप और ध्यान करने वाले ऋषि भी अप्सराओं के मोहित करने वाले आकर्षक बदन उनके मन को मोह लेता था। इन खूबसूरत अप्सराओं को प्रेम और खूबसूरती का प्रारूप माना जाता था।शास्त्रों की माने तो स्वर्ग में कई अप्सराएं हुआ करती थी। स्वर्ग के राजा इंद्र की 11 प्रमुख सेविका थी। इन 11 प्रमुख अप्सराओं में एक नाम घृताची भी था। घृताची अति मनमोहक और बेहद ही सुंदर अप्सरा थी। माना जाता है कि घृताची के सुंदरता से यज्ञ पाठ करने वाले कई ऋषि मुनि भी मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे।

घृताची अप्सरा

घृताची अप्सरा स्वर्ग की सबसे सुंदर, मोहिनी और अति प्रिय सौंदर्य की मालिक थी। घृताची देवताओं और ऋषियों को भी अपने हुस्न के सौंदर्य के बल से मंत्र मुक्त कर लेती थी। घृताची स्वर्ग की अति प्रिय 11 प्रमुख सेविका अप्सराओं में एक है। हालांकि इन सभी अप्सराओं में सबसे प्रधान अप्सरा रंभा थी। अप्सराओं की संख्या अलग-अलग मान्यताओं के साथ भिन्न-भिन्न है, किसी एक मान्यता के अनुसार इनकी संख्या 108 बताई जाती है तो अन्य मान्यताओं के अनुसार 1008 बताई जाती है। घृताची अन्य गुणों के साथ माघ महीने में सूर्य पर अधिप्ष्ठित रहती है। घृताची के कामुक तन और बेहतरीन सुंदर काया बदन को देखने मात्र से विभिन्न ऋषियों के वीर्यपात हो जाता था।

ऋषि भरद्वाज और घृताची

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि भारद्वाज की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने घृताची का सहारा लिया था। माना जाता है कि इंद्र, ऋषि भारद्वाज की की तपस्या भंग करने के लिए घृताची को इसलिए भेजा था क्योंकि घृताची के कामुक तन को देखकर ऋषि भरद्वाज मंत्रमुग्ध हो जाएंगे और उनकी तपस्या भंग हो जाएगी। ज्यों ही ऋषि भरद्वाज गंगा स्नान कर के अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे तभी अप्सरा घृताची नदी से स्नान कर बाहर निकल रही थी और उसी वक्त घृताची के कामुक तन और मनमोहन अंगों पर ऋषि भरद्वाज की नजर पड़ी। अप्सरा घृताची भीगे वस्त्रों में थी जिसके कारण ऋषि भरद्वाज की नजर उनके तन से नहीं हट पाई। ऋषि भरद्वाज घृताची के कामुक तन को देखने के बाद खुद को संभालने की बहुत कोशिश की परंतु वह अपने प्रयास में असफल रहे।कुछ क्षण के बाद ऋषि भरद्वाज वहीं पर स्थिर रुक गए और एक नजर से अप्सरा के तन को निहारने लगे। माना जाता है कि मात्र अप्सरा के सौंदर्य और रूप को निहारने से ऋषि भरद्वाज कामवासना से पीड़ित हो गए थे। अप्सरा के सुंदर काया को देखकर ऋषि भारद्वाज को कुछ ही क्षणों में वीर्यपात हो गया था। ऋषि भारद्वाज अपने वीर्य को एक मिट्टी के बर्तन( द्रोण) में रख दिया था, जिससे बाद में द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।

घृताची के साथ कई ऋषियों का संबंध

1.माना जाता है कि स्वर्ग के राजा इंद्र अप्सराओं को धरती पर ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए भेजा करते थे। अनेक पौराणिक कथाओं में घृताची के संबंध अनेक अनेक ऋषियों के साथ बताया गया है।

2.माना जाता है कि घृताची और विश्वकर्मा के संबंधों से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।

3.घृताची और रुद्राक्ष के संबंध बनाने से 10 पुत्रों और 10 पुत्रियों की प्राप्ति हुई थी।

4.घृताची और कन्नौज के नरेश कुशनाग के साथ संबंध बनाने से घृताची के गर्भ से 100 कन्याओं ने जन्म लिया था। 
 
5.महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति को घृताची के गर्भ से गुरु नानक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। 

6.ऋषि वेदव्यास घृताची के कामुक तन को निहारने मात्र से कामाशक्त मुद्रा में चले गए थे, जिसके बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुखदेव है।




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