हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि पर कूर्म जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु ने कूर्म अवतार लिया था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की पूजा की जाती है। मान्यता के मुताबिक इस दिन जो भी जातक भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। इस साल 23 मई 2024 को कूर्म जयंती मनाई जा रही है। तो आइए जानते हैं कूर्म जयंती पर पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व...
शुभ मुहूर्त
बता दें कि 22 मई 2024 को शाम 05:17 मिनट पर पूर्णिमा तिथि की शुरूआत हो रही है। वहीं 23 मई शाम 05:32 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के मुताबिक 23 मई 2024 को कूर्म जयंती का पर्व मनाया जा रहा है।
पूजा विधि
इस दिन शाम को घर की पूर्व दिशा में तांबे के कलश में पानी, गुड़, दूध, तिल, फूल और चावल मिलाकर कलश की स्थापना करें।
फिर दीपक जलाएं और कूर्म अवतार को सिंदूर व लाल फूल अर्पित करें।
वहीं श्रीहरि को तुलसी अतिप्रिय है। इसलिए श्रीहरि विष्णु को तुलसीदल अवश्य चढ़ाएं।
फिर सात्विक भोजन का भोग लगाएं और कुछ मीठा अवश्य शामिल करें।
पूजन के बाद किसी माला से 'ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मसनाय नम:' मंत्र का जाप करें।
जरूर करें ये उपाय
यह दिन भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। इसदिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी का भी पूजन करें।
इस दिन पीली चीजों का दान करना शुभ माना जाता है।
भगवान विष्णु की पूजा कर आरती करें, इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
कूर्म अवतार की कथा
नरसिंह पुराण के मुताबिक कूर्मवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार हैं। जब दुर्वासा ऋषि को देवराज इंद्र पर क्रोध आया, तो ऋषि ने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के प्रभाव से देवताओं की सुख-समृद्धि खत्म हो गई और मां लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गईं। तब देवराज इंद्र ने जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु के कहने पर असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया।
असुरों और देवताओं ने समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को रस्सी बनाया। लेकिन मदरांचल पर्वत के नीचे आधार न होने से यह समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान श्रीहरि विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल का आधार बनें। जब भगवान विष्णु ने कूर्म का अवतार लिया, उस दिन वैशाख माह थी। तभी से इस दिन कूर्म जयंती मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई।