हिंदू पंचांग के मुताबित उगादि पर्व तेलुगु नववर्ष का आरंभ माना जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उगादि का अर्थ है नए युग की शुरूआत। यह पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, उगादि पर भगवान ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए यह पर्व सृष्टि के प्रारंभ का प्रतीक भी माना जाता है। इस दिन घरों को आम के पत्तों से सजाया जाता है औऱ विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
बता दें कि उगादि पर विशेष रूप से उगादि पचड़ी बनाई जाती है। उगादि पचड़ी में 6 तरह का मीठा, खट्टा, कड़वा, तीखा, नमकीन और कसैला स्वाद होता है। यह 6 तरह के स्वाद जीवन के अलग-अलग अनुभवों का प्रतीक होते हैं। तो आइए जानते हैं कि उगादि पर्व कब मनाया जा रहा है। साथ ही पूजा विधि और महत्व के बारे में भी जानेंगे।
तिथि
हिंदू पंचांग के मुताबिक 29 मार्च 2025 की शाम 04:27 मिनट से प्रतिपदा तिथि की शुरूआत हुई थी। वहीं आज यानी की 30 मार्च की दोपहर 12:49 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। ऐसे में उदयातिथि के हिसाब से 30 मार्च 2025 को उगादि पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन तेलुगु शक संवत 1947 भी शुरू होगा।
उगादी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाकर स्नान करें और फिर घर की अच्छे से साफ-सफाई करें। अब भगवान ब्रह्मदेव की प्रतिमा या मूर्ति को स्थापित करें। भगवान ब्रह्म देव को फूल, अक्षत और धूप-दीप आदि अर्पित करें। इसके बाद भगवान ब्रह्मा के मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती करें।
उगादी का महत्व
उगादि पर्व दक्षिण भारत में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह पर्व चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। उगादि पर्व नई ऋतु के आगमन का प्रतीक है, इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और घर आदि की साफ-सफाई करते हैं। उगादि पर्व पर घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं। यह पर्व सिर्फ नए साल का प्रतीक नहीं बल्कि समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और नई ऊर्जा का संचार करता है।