जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। रोहिणी व्रत का संबंध नक्षत्रों से माना जाता है। मान्यता के मुताबिक जिस दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, उस दिन इसका व्रत किया जाता है। मुख्य रूप से महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को करती हैं। वहीं साल में 12 रोहिणी व्रत पड़ते हैं। बता दें कि अक्टूबर के महीने में 4 अक्टूबर 2023 को रोहिणी व्रत किया जा रहा है। आइए जानते हैं इस व्रत के महत्व और पूजन विधि के बारे में...
रोहिणी व्रत का महत्व
जैन धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म में भी रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में यह व्रत मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। वहीं जैन धर्म में इस व्रत को नक्षत्रों से जोड़कर देखा जाता है। इस दिन जैन धर्म के लोग भगवान वासु स्वामी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन 27 नक्षत्रों के एक साथ आ जाने से शुभ योग बनता है। वहीं रोहिणी व्रत के दौरान मां लक्ष्मी की विधिविधान से पूजा-अर्चना व व्रत करने से व्यक्ति को धन-धान्य की कमी नहीं होती है। मान्यता के मुताबिक इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
रोहिणी व्रत पूजा विधि
रोहिणी व्रत के दौरान सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ कपड़े पहनें। इसके बाद भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करते हुए ॐ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें और व्रत का संकल्प लें। फिर एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी की मूर्ति व प्रतिमा को स्थापित करें। अब मां लक्ष्मी को नए वस्त्र अर्पित करें और उनका श्रृंगार करें।
इसके बाद मां लक्ष्मी को फल, फूल, धूप-दीप आदि चढ़ाएं। इसके बाद लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें और मां को भोग लगाएं। सबसे आखिरी में मां लक्ष्मी की आरती करें। बता दें कि इस व्रत का पारण मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है। इसलिए शाम को व्रत का पारण करें और चंद्र देव को अर्घ्य दें।