हिंदू धर्म में पितृपक्ष की विशेष मान्यता होती है। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों की पूजा-आराधना करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है और पूर्वज हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष को श्राद्ध भी कहा जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर सर्वपितृ अमावस्या तक पितृपक्ष होता है।
इस बार 17 सितंबर 2024 से पितृपक्ष की पूर्णिमा तिथि की शुरूआत हो चुकी है। लेकिन श्राद्ध की प्रतिपदा तिथि को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में 18 सितंबर 2024 से पितृ पक्ष की शुरूआत और पहला श्राद्ध माना जा रहा है। तो आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बताने जा रहे हैं कि पहले श्राद्ध पर पितरों का तर्पण किस तरह करें और इस दौरान किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए।
पूजा विधि
आज यानी की 18 सितंबर को पहले श्राद्ध पर सुबह 11:50 मिनट से लेकर दोपहर 12:19 मिनट तक कुतुप मुहूर्त रहेगा। फिर दोपहर 12 बजे से लेकर 01:28 मिनट तक रोहिणी मुहूर्त रहने वाला है। वहीं दोपहर के बाद यानी की 01:28 मिनट से लेकर दोपहर 03:55 मिनट तक अगला मुहूर्त रहेगा।
बता दें कि श्राद्ध के दिनों में रोजाना पितरों की तस्वीर के सामने नियमित रूप से जल अर्पित करना शुभ माना जाता है। तर्पण करने के लिए सूर्योदय से पहले पीपल के वृक्ष के नीचे जूड़ी लेकर स्थापित की जाती है। फिर एक लोटे में थोड़ा सा गंगाजल, दूध, सादा जल, जौ, बूरा और काले तिल डालकर कुशी की जूड़ी पर 108 बार चढ़ाया जाता है। जब भी आप चम्मच से जल चढ़ाएं तो उस दौरान मंत्रों का उच्चारण जरूर करें।
इन बातों का रखें खास ध्यान
मान्यता के अनुसार, श्राद्ध के दिनों में कुछ बातों का खास ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है।
घर के सबसे बड़े यानी की वरिष्ठ सदस्य के द्वारा रोजाना तर्पण यानी पितरों को जल चढ़ाया जाना चाहिए।
यदि घर पर वरिष्ठ पुरुष न हो, तो पौत्र या नाती से भी पितरों का तर्पण कराया जा सकता है।
सुबह और शाम स्नान करके पितरों को याद किया जाता है।
पितरों का तर्पण करने के दौरान तीखी सुगंध वाले फूलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बल्कि मध्यम सुगंध वाले फूलों का इस्तेमाल करना चाहिए।
इस दौरान श्रीमद्भागवतगीता का पाठ करना शुभ माना जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कार्य किसी से कर्ज लेकर नहीं करना चाहिए।
किसी तरह के दबाव में आकर पितरों का तर्पण या श्राद्ध नहीं करना चाहिए।