सनातन धर्म में कार्तिक और माघ महीने में गंगा स्नान किया जाता है। वहीं, पूर्णिमा तिथि को श्रदालु गंगा नदी समेत पवित्र नदियों और सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस दिन गंगा तट पर उत्सव जैसा माहौल रहता है। श्रद्धालु पूजा, जप, तप और दान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पूजा, जप, तप और दान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। हर माह में आने वाली पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है, लेकिन इन में से कुछ पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में माघ माह में आने वाली पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा या माघ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। माघ पूर्णिमा के दिन चंद्रदेव और भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने की प्रथा है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा का भी महत्व है। माघी पूर्णिमा पर सुबह स्नान करना एवं व्रत, दान करना आदि नियमों का उल्लेख ग्रंथों में भी मिलता है। इस दिन खासतौर पर प्रयाग संगम पर स्नान करना अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन देवलोक से देवतागण पृथ्वी पर आते हैं। आइए जानते हैं कब है माघी पूर्णिमा, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में।
माघ पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में एक बार जब भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे। उस समय नारद जी वहां आये। नारद जी को देख भगवान श्रीहरि विष्णु बोले- हे महर्षि आपके आने का प्रयोजन क्या है? तब नारद जी बोले- नारायण नारायण प्रभु! आप तो पालनहार हैं। सर्वज्ञाता हैं। प्रभु - मुझे ऐसी कोई लघु उपाय बताएं, जिसे करने से पृथ्वीवासियों का कल्याण हो। तदोपरांत, भगवान श्रीहरि विष्णु बोले - हे देवर्षि! जो व्यक्ति सांसारिक सुखों को भोगना चाहता है और मरणोपरांत परलोक जाना चाहता है। उसे सत्यनारायण पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके बाद नारद जी ने भगवान श्रीहरि विष्णु से व्रत विधि बताने का अनुरोध किया।
तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी बोले - इसे करने के लिए व्यक्ति को दिन भर उपवास रखना चाहिए। संध्याकाल में किसी प्रकांड पंडित को बुलाकर सत्यनारायण की कथा श्रवण करवाना चाहिए। भगवान को भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। इससे सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं।
माघी पूर्णिमा 2022 पंचांग
सूर्योदय: प्रात: 06:59 बजे
सूर्यास्त: सायं 06:12 बजे
चन्द्रोदय: शाम 05:54 बजे
चन्द्रास्त: उस दिन चन्द्रास्त समय प्राप्त नहीं है.
नक्षत्र: अश्लेशा, दोपहर 03:14 बजे तक, उसके बाद मघा
हिंदी पंचांग के अनुसार, 16 फरवरी को माघ पूर्णिमा है। इस दिन पूर्णिमा तिथि सुबह 9 बजकर 42 मिनट से शुरू होकर 16 फरवरी को रात में 10 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन गंगा स्नान का विधान है।
माघी पूर्णिमा पूजन विधि
1. माघ पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी या पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना गया है।
2. यदि संभव ना हो तो गंगाजल को जल में मिलकर स्नान कर सकते हैं।
3. स्नान के उपरांत 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें।
4. तिलांजलि देने के लिए सूर्य की ओर मुख करके खड़े हो जाएं और फिर जल में तिल डालकर उसका तर्पण करें।
5. विधि-विधान से सूर्य देव की पूजा-अर्चना करें।
6. भगवान को चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि चीजें अर्पित करें।
7. पूजा के आखिर में आरती और प्रार्थना करें।
8. पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान दक्षिणा दें।
9. संभव हो तो ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
10. माना जाता है कि इस दिन दान का भी विशेष महत्व है।
माघी पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म में माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मघा नक्षत्र में पड़ने के चलते इस माह को माघ कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा तिथि को गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप कट जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में निहित है कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजल में वास करते हैं। ज्योतिष के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा पर चंद्रमा मघा नक्षत्र और सिंह राशि में स्थित होता है। मघा नक्षत्र होने पर इस तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। अत: महज माघ पूर्णिमा के दिन महज स्पर्श करने से जातक को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।