होम
कुंडली
टैरो
अंक ज्योतिष
पंचांग
धर्म
वास्तु
हस्तरेखा
राशिफल
वीडियो
हिन्दी न्यूज़
CLOSE

Adhik Maas Purnima 2023: आज मनाई जा रही सावन अधिक मास की पूर्णिमा तिथि, इन शुभ योग में करें पूजा-अर्चना

By Astro panchang | Aug 01, 2023

सावन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को अधिक पूर्णिमा व्रत किया जाता है। इस यानी की 2023 में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि आज यानी की 1 अगस्त को पड़ रही है। अधिक मास के कारण इस पूर्णिमा को अधिक पूर्णिमा कहा जाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में बताने जा रहे हैं। 

अधिक मास पूर्णिमा तिथि
हिंदू पंचांग के मुताबिक 01 अगस्त को सुबह 03:51 मिनट से श्रावण अधिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शुरू होगी।
वहीं 02 अगस्त को देर रात 12:00 बजे श्रावण अधिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाएगी।
ऐसे में 1 अगस्त 2023 को अधिक मास की पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा।

अधिक मास की पूर्णिमा का महत्व
आपको बता दें कि हिंदू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही सत्यनरायण व्रत करने से विष्णु भगवान की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता के पूर्णिमा के विशेष दिन पर पूजा-पाठ और स्नान-दान का विशेष महत्व होता है। वहीं व्यक्ति को भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। 

शुभ योग
इसके साथ ही 1 अगस्त 2023 को शाम 06:52 मिनट कर प्रीति योग रहेगा। वहीं शाम को 04:03 मिनट तक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र रहेगा। बता दें कि इस दिन मंगला गौरी व्रत का भी संयोग बन रहा है। ऐसे में पूर्णिमा तिथि पर आप पूजा-अर्चना कर माता पार्वती और भगवान शंकर का भी आशीर्वाद पा सकते हैं। 

पूजा विधि
अधिक मास की पूर्णिमा के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर लें। इस दिन नदी में स्नान करान ज्यादा शुभ माना जाता है। इसके बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करने के दौरान उनके बीज मंत्र 'ऊँ घृणि सूर्याय नम:' का जाप करें। फिर एक साफ चौका पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान श्रीहरि विष्णु की मूर्ति व प्रतिमा स्थापित करें। फिर उन्हें धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के समक्ष प्रार्थना करते हुए सत्यनारायण व्रत का संकल्प करें।

वहीं शाम को पूजा के दौरान अपने सामने पानी का कलश रखें। भगवान विष्णु को पंचामृत, पत्ता, केला और पंजीरी अर्पित करें। फिर भगवान श्री हरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। वहीं संध्याकाल के दौरान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिए। इसके बाद परिवार और अन्य लोगों को प्रसाद वितरित कर सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देना चाहिए।
Copyright ©
Dwarikesh Informatics Limited. All Rights Reserved.