एकादशी तिथि भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होती है। मान्यता के मुताबिक जो भी जातक एकादशी का व्रत करता है और श्रीहरि की पूजा-अर्चना करता है, उसके सभी पापों का नाश होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी पड़ती है। अपरा एकादशी को अचला, भद्रकाली और जलक्रीड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 02 जून 2024 को अपरा एकादशी का व्रत किया जा रहा है।
हिंदू पंचांग के मुताबिक 2 जून 2024 की सुबह 05:04 मिनट पर एकादशी तिथि की शुरूआत होगी। वहीं अगले दिन यानी की 03 जून 2024 को रात 02:41 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। उदयातिथि के अनुसार, 02 जून 2024 को अपरा एकादशी का व्रत किया जाएगा।
अपरा एकादशी का महत्व
बता दें कि अपरा एकादशी का अर्थ अपार पुण्य से है। पद्म पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। वैसे तो सारी एकादशी तिथि पुण्यफल दायक होती हैं। लेकिन मान्यता है कि अपरा एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु जातक के जीवन के सभी कष्टों को दूर करने के साथ अपार पुण्यफल प्रदान करते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अपरा एकादशी पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है।
इस एकादशी का व्रत करने से झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, भूत योनि, दूसरे की निंदा, ब्रह्म हत्या, परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। अपरा एकादशी का व्रत करने व इसके महत्व को पढ़ने व सुनने से सहस्त्र गोदान जितना फल प्राप्त होता है।
पूजनविधि
पद्म पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें। फिर श्रीहरि को रोली, मोली, पंचामृत, गोपी चन्दन, तुलसी पत्र, ऋतुफल, अक्षत, पीले पुष्प, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती करें। इस बार रविवार को एकादशी तिथि पड़ रही हैं। ऐसे में तुलसी दल एक दिन पहले तोड़कर रख लेना चाहिए।
एकादशी व्रत के नियम
अपरा एकादशी के दिन शुभ रंग के साफ वस्त्र धारण करें। फिर मन में श्रीमन नारायण का ध्यान करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करें औऱ इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का विशेष रूप से पाठ करना चाहिए। व्रत करने वाले जातकों को इस दिन छल-कपट, लालच, परनिंदा और द्धेष की भावनाओं से दूर रहना चाहिए और पूरा दिन भगवान विष्णु के भजन करना चाहिए। व्रत के दिन तामसिक भोजन न करें और चावल न खाएं। फिर अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।